Saturday 22 November 2014

अपने देश की उन लाडली बेटिओं के नाम....
मेरी यह...............................चंद पंक्तियां
तेरे महलों से दूर चली जाऊंगी....... , एक दिन
तेरी यादों को बर्रात साथ ले जाऊंगी.., इक दिन
तेरे प्यार की बरसात के सारे अरमान,
साथ ले जाऊंगी ...इक दिन
सोती हुई की नींद खुल जाएगी तो
तेरी याद बहुत सताएगी, ओ बाबुल..., उस दिन !!
वो तेरा प्यार से लाड़ो कहना
वो लड़कपन की याद तडपायेगी..एक दिन
उन आंसूंओं को समेट के आँचल में
दिखाने जरूर ले आऊँगी ओ बाबुला, मैं ..इक दिन !!
यह रीत किस ने बनाई है विदाई की
वो पालने में खिला के , फिर रुसवाई की
दिल फटने को होता है मेरे बाबुला
जब तुझ से प्यार की यहाँ ,मिलती ठुकराई है..एक दिन !!
अजीत
******************हिचकी *************************
हिचकी आ जाती है, न जाने कौन याद करता है
न जाने किस हालात में मिलने की फ़रियाद करता है
हम को तो न मालूम की कौन सी हिचकी किस बात की है
हो सकता है, हिचकी , निशानी किसी फ़रियाद की है !!
हम ने तो सोचा न था की ऐसा भी हो जाता है
हिचकी हीच हिच करती है, दिल हमारा धड़क जाता है
सीने पर हाथ रख कर, सोच में पड़े हुए हैं
हिचकी क्या है तेरा अंदाज, हम कशमकश में पड़े हुए हैं !!
या तो ठहर जा, या बुला के ला जिन के लिए बेचैन है
तू और मेरा यह दिल , न जाने किस बात पर यूं हैरान है
यह तो नहीं मालूम की क्या होना है और क्यूं आती है तूं
गुजारिश करता हूँ, या चली जा, या धड़कन को न बढ़ा !!
अजीत
सुन्दरता का होना आजकल कितना भयानक है
दुनिया खिंची चली आती है चुम्बक की तरह
न तो कुछ सोचती है, न ही कुछ समझती है
इक मृगनयनी के पीछे कितनी दुश्वार है दुनिया !!
होश में नहीं बेहोशी में आगे को बढती है दुनिया
सामने से चाहे गुजर जाये परिवार का कितनी मदहोश है दुनिया
न रखती है अब लाज किसी बात की न खोफ्फ़ रखती है
आने वाले समय में यह हो जायेगी सारी वीरान यह दुनिया !!
सच को जानती नहीं, झूठ का साथ बढाती है दुनिया
उस के देखे नयन नुकीले, तो कितना सीना तानती है दुनिया
किसी और के घर की अमानत को अपना बनाने को
न जाने कितने कितने भ्रम अपने मन में पालती है दुनिया !!
अजीत
जिस्म को दिखाने की इक होड़ सी लगी है
में कैसी लगती हूँ, या कैसा लगता हूँ ??
तस्वीर का अगर दूसरा पहलू देखो तो
यह बदतमीजी,,अब तो सरे राह दिखती है !!
खूबसूरती अगर मिली है तो शुक्रिया कर रब का
दिखाने से तेरा रूप सुहाना नहीं लगता है
यह तो फनाह है, बस फनाह, मिल जायेगा मिटटी में
याद रखना, इस को उठाने वाला कभी नहीं मिलता है !!
अंदर की तस्वीर दिखा दिखानी है अगर ज़माने में
अगर खुदा ने बक्शा हुआ है तुझ को इस ज़माने में
कोहिनूर सी चमकती परख रखते हैं सब मेरे प्यारो
"अजीत" का कहा हुआ, कभी ज़माने को बुरा लगता है !!
बर्बाद होती हुई दुनिया का रूप सामने आ रहा है
वो दिखाता है, जमाना देखता हुआ ही जा रहा है
ऐसा लगता है, जैसे कुछ खास रखा हुआ है
और वो इस के रूप में डूबता हुआ जा रहा है !!
अजीत
फेस बुक एक बेहतरीन नजारा देखा
लोग अपना स्टेटस बढ़ने के लिए न
जाने क्या क्या कर जाते हैं
रहते तो हैं भारत देश में और
खुद को विदेशी कहलाती हैं
डाल कर उलटी सीधी तस्वीरों को
अपना प्रोफाइल बेकार यूं बढ़ाते हैं
कभी नंगे हो जाते हैं और
कभी वहीँ से दुसरे को जाल में फसाते हैं !!
अपनी तस्वीर यूं नहीं लगाते कि
कहीं घर वाले न पकड़ लें कहीं से
छुप छुप कर बाते करते हैं, और
अपने मोबाइल का बिल खुद बढ़ाते हैं !!
फेस बुक नाम है, खुद के फेस का
ना कि किसी और के टैग होते फेस का
अगर डर इतना ही लगता है यहाँ
तो बेकार वो अपना मर्ज बढ़ाते हैं !!
अजीत
मेरी परेशानिआं तो पहले ही कम न थी
तूं चला आया सितम ढाने को
खुद को हंसाने को
और मुझ को रूलाने को
बड़ा मायूस सा चेहरा
बनकर दिखाई दिया
शायद मेरी उलझती
हुई परेशानी पर
आज काफूर सा
लग रहा है
तूं मेरी दिल;पर
तयार है फिर सितम ढाने को
खुद को तो समझाना
बड़ा मुश्किल सा लगा
अभी हल नहीं निकला मेरी
परेशानी का, तुझे किस
ने भेजा जरा यह तो बता
मेरी उलझनों को जाल में
बुनकर फिर से रूलाने को !!
अजीत
बाबा रे बाबा...क्या हो रहा है...संसार का हाल
धर्म की शिक्षा देने वाला ही कर रहा नर संहार
खोल के बड़े बड़े आश्रम, कौन सा देते हैं गुरु ज्ञान
एक दिन फिर वो खुद ही हो रहे हैं यहाँ बदनाम !!
हर बुरी बात का अंत तो खत्म होगा यूं ही
सदमार्ग का रास्ता तो दिखाते नहीं
पर सभी को देते हैं प्रवचन सदा महान
और खुद नहीं करते न चलते,कैसे है महान !!
इस की सारी जड़ होती है, घर की औरत
बड़ी जल्दी विश्वाश करती है यह औरत
सोचती तो है, की गुरूशिक्षा देगा
तो भव सागर तार जाऊंगी
खुद तो सदा यहाँ पर आऊंगी
और अपने जैसो को भी साथ लाऊंगी !!
मूर्खता का पता जब चलता है उनको
बड़ा प्रायश्चित महसूस होता है सबको
शायद किस्मत का फेर है,या कुछ देर है
पर अपनी समझ में,सब बाबा आज फरेब हैं !!
अजीत
काश आज इंसान नंगा होता पूरा
तो शायद नग्नता शरमा जाती
जो गंदगी इंसान बनके देख रहे
कम से कम वो तो न देखि जाती !!
विदेशी धरती का सब यहाँ आ रहा
वो हैं नंगे, यहाँ वो सब हो रहा
शर्म, लज्जा, इज्जत ,सब ख़त्म
यहाँ कपडे पहने, फिर भी नंगा हो रहा !!
खुले आम सब नग्नता परोस रहे
होश में होकर फिर भी बेहोश हो रहे
कितना समय बदलता जा रहा
पता नहीं क्यूं नंगा होता जा रहा !!
दुनिया का अन्त शायद ऐसा ही होगा
समय पर शायद कफ़न भी इन पे न होगा
नंगे पन ने कर दिया सारा समाज बर्बाद
पता नहीं इनको कन्धा नसीब होगा या न होगा ??
अजीत


दिल बनाया भगवान् ने, और रख दिया सजा के इंसान के अंदर
फिर भी सब से पहले लगती है ठोकर इस मासूम को दिल के अंदर !!
न जाने क्यूं, लगा लेता है अपना दिल , किसी और के दिल के अंदर
फिर अपने आप खुद को समझाता और उलझता है इस संसार के अंदर !!
इस की मासूमियत तो सब से ही ज्यादा निराली है हर एक के अंदर
अपना बना लेने को पल पल न जाने क्या क्या सोचता है दिल के अंदर !!
इतना पास आ जाता है , की दूर होने पर खुद घबराता है अपने अंदर
न सोच जब पूरी होती , तो, चला जाता है, मैखाने में सब से अंदर !!
याद करता, वफ़ा का वास्ता देता, उस अपने प्यारे का बनाने को सिकंदर
पर वो वफ़ा, जब तब्दील हो जाती, किसी बेवफाई का का रूप ले उस के अंदर !!
बर्बाद होने को बस पल पल का इन्तेजार करता ,और ठोकरे खाता ,बन के बंदर
एक दिन मौत पास आ कर उस से पूछती, बोल अब तो चल "ओ" मेरे सिकंदर !!
"अजीत" दिल दिया था रब ने , कुछ कर गुजरने को, तुझे इस जनम के अंदर
पर लगा के दिल को ,किसी और के लिए, बर्बादी का भर गया सारा समंदर !!
अजीत


कर ले तूं मौज
शायद नहीं मिलेगी रोज
न कर कमी
करने में कोई खुराफात
मन के दंगल
और बना ले सारा जंगल
यह समां न
लौट के आये ,मौज करले
अपने हवास की
आग को रोज ठंडा कर ले
पि ले जाम भर
भर के औ दुनिया के मेहमान
जिन्दगी फिर कभी न
दोबारा तुझ को मिलेगी
अपनी बचा के दूसरे
की लूट ले,और
यह कहाँ फिर कभी
दोबारा मिलेगी
हर बात का होता है
अंत, वो तुझ पर
डिपेंड करता है
की
सुखद:: या दुखद::
अजीत


तुझ पर हक़ जमाने का , मैं करार नहीं कर सकता !!
दिल तुझ से लगा के ,फिर में तकरार नहीं कर सकता !!
दिल को इतना पास लाकर फिर बेकरार नहीं कर सकता !!
याद तेरी न आये पल पल, इसका में इन्तेजार नहीं कर सकता !!
सींचता हूँ, अपने अरमानो से अपनी दुनिया के ख्याल ए दोस्त !!
तूं नजर में न पड़े तो बुरा लगता है,इस का में इन्तेजार कर नहीं सकता !!
तूं आये न आये पास मिलने को, तेरी याद को खुद से दूर कर नहीं सकता !!
अजीत
जीवन क्या है ??
बचपन
जवानी
बुढ़ापा
तीन अंशों में गुजरता
अपनी विचार धाराओं पे
दूसरी के अधिकार
में पनपता
और खुद पर हावी
होता समाज
बचपन माँ की आगोश में
कब गुजर गया
जवानी आई
बहुत कुछ लाई
मन प्रफुल, साथ में
जिमेवारी का एहसास
कुछ करने का मन
समय बिता तो
माँ गुजरी, तो
पत्नी ने स्थान लिया
जब बाप बना तो बाप
ने संसार छोड़ दिया
आज, खुद बाप
और घर का
पल पल एहसास
खुद पर अंकुश
लगता परिवार
बन्धन का जीवन
मन खुश रहना
भी चाहे, तो
बस नजर आता
बुढ़ापे का स्थान
और फिर एक दिन
गुजरता हुआ
पल पल, मिटता बजूद
और बहुत बहुत दूर
चार कंधो पर जाता
हुआ शमशान
छोड़ कर सारा जहाँ
अकेला आया, अकेला गया
वाह मेरे भगवान्
वाह मेरे हरी राम
तूं सच है
""महान"""
अजीत
समर्पण "" !! कर दे
खुद को,
अपने सारे अरमानो को
अपनी चिता को
अपने हाथो से जला जा
कल हो न हो
इस पर मरहम
लगाने वाला
खुद अपनी प्यास को
बुझा जा
तूझ को अकेला
ही तो चलना है
किस के साथ की
सोचता है
तेरा नाम है
समर्पण
फिर किस को तू
यहाँ खोजता है
विवशता तेरे
रग रग के अंदर
यूं शामिल
है जैसे
नसों के अंदर खून
तूं विवश ही रहेगा
न उभर कर
कुछ कर पायेगा
यह मत भूल
तेरा अपना
वजूद, कुछ नहीं
तो कुछ है
सब इनका, पल
भर को खुश होता
तेरा यह चेहरा
तुझो को
याद दिलाता है, यह
कभी न भूल
तूं है
समर्पण, बस कभी
न भूल, कभी न भूल !!
अजीत


अनजाने में भी
न सोचना कि कभी
तेरा कुछ है यहाँ पर,
न तेरी यह मुस्कराहट
न तेरा यह बदन
न तेरी यह महल
है, इन पर
हक़ किसी और का
तूं तो कुम्हार का
वो बर्तन है,
जैसे ढालेगा
वो तूं ढल जायेगा
तेरी सां, आये
न आये, कोई न रोक पायेगा
पानी सा बुलबुला है
जरा से ठेस में
फूट जायेगा
आदमी, क्या है
कठपुतली
बस एक कठपुतली
सोचता है कुछ
पर वो सोचता है कुछ
तूं उड़ने की सोचता
वो रोकने की सोचता
तूं, सच कुछ नहीं
नहीं है हक़
तेरा खुदा पर
इस बात पर न गुमान
कर, फिर सोच
सब यही का है,
तेरा तन भी यहीं रह
जायेगा, और
उड़ जाएगी
"""आत्मा""
बता तेरा क्या साथ
जायेगा.!!!
अजीत
*******मेरा एक छोटा सा व्यंग********
खुद को समर्पित करते हुए ??
सींच कर एक नन्हा
सा पौधा , मेरी कल्पना
में विराजमान हो गया
में उस पर अपना
हक़ जताने के लिए
खुद मेहरबान हो गया
वो मासूम सा, सोच
में पड़ गया, की यह
आज खाद पानी
देकर, मुझ
पर मेहरबान हो गया
क्या इस ने पैदा किया
मुझ को जो मेरी
सारी खुशिओं
का यह तलबगार हो गया
उस ने ली अंगडाई
और वो मुरझाने लग
गया
मैने सोचा, की अब
इस का दिन नजदीक
है आने लगा
छोड़ के में उस को
किसी और पर जाकर
हक़
अपना जताने लगा
पर वो समझा मेरी
फितरत और वो भी
अपने स्वाभाव में
बल खाने लगा
और मुझ को याद
आई अपनी,तरफ
झाँका मैने
और बोला मन से
सब्र रख उतना की जितना दिया है ऊपर वाले ने
उस पर क्यूं हक़ जताता है यहाँ तू इस ज़माने में
रहने दे उस को अपनी छोटी सी खुशिओं के साथ
न परेशां कर आ आकर तूं अपने किसी बहाने से !!~
अजीत