Friday 31 January 2014

हे रेलगाड़ी, कब तक तून हम आने जाने वालो

मिलती थी रोज मुझको
आज अभी तक नहीं आयी
इन्तेजार में मेरे नैना तरसे
अब क्या करें हम भाई

में हमेशां तेरा इन्तेजार करता 
हूँ, पल पल की तेरी में
यहाँ पहुँच कर खबर रखता हूँ
न जाने किस पल तेरे आने
की खबर आये...हर किसी
की बात काट कर बस तेरे
आने का इन्तेजार करता हूँ

आज कोहरा इतना आ
गया की तेरे आने का यहाँ
वो समय चला गया
अभी अभी यह मुझे
खबर आयी, की रस्ते
में आते आते
तेरे सामने कोई हाथी
आ गया , बुझ गया दीप
उस घर का, न जलेगा
चिराग कभी उस वन का

तूं उनको तो सता कर
आयी, अब हम को भी सतायेगी

हे रेलगाड़ी, कब तक तून
हम आने जाने वालो
को रोजाना , इसी तरह
से तडपाएगी ??

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

फिर भी यह दिल प्यार करता है

वो सताने को मजबूर हैं.
हम हँसाने को मशहूर हैं

वो दिखाने को मशहूर हैं
हम प्यार जताने को मजबूर हैं

उनका यह अंदाज मजबूर करता है
फिर भी यह दिल प्यार करता है

जीत तो अपनी ही पक्की होगी
क्योंकि सारा सारा दिन फिर भी
उनकी इन्तेजार करता है !!!!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

बनो तो दानवीर कर्ण की तरह,

बनो तो दानवीर कर्ण की तरह,
जिस को श्राप ने मारा
क्या हिम्मत थी अर्जुन की
तो बस कर्ण को श्राप ने ही दे मारा

श्राप न मिलता अगर उनको
तो नहीं था कोई शूरवीर उन जैसा
बस गुरु से झूठ बोलकर
शिक्षा के मोह ने ही उनको मारा

था साथ रथ पर श्री कृष्ण जी
के प्रकोप का , जिस की वजह
से एक तीर कर्ण के
से रथ तीन कदम ही
जाकर रण में था धकेला

अगर न होते कान्हा उस पर
तो न जाने अर्जुन का
क्या क्या उस वक्त ही होता

नमन है उस वीर कर्ण को
जिस को पैदा होते ही
लोक लाज की शर्म से बचने पर
उस की माँ ने धारा में बहाया

बड़ा होते होते एक राज पूत
कहलाने की जगह वो बेचारा
एक सूत पुत्र के नाम से
महाभारत में कहलाया

मौके की तलाश ने उस शूरवीर
को मौत के घाट जा उतारा
न मिलता अगर श्राप उसको
तो , आज अर्जुन की जगह
दानवीर कर्ण का नाम
लेने को बेबस हो जाता
यह भारत देश हमारा

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

Thursday 30 January 2014

तुम चुप इतना हो

तुम्हारी खामोश निगाहों को पढने 
की मुझे आदत सी हो गयी है
तुम चुप इतना हो की अंधेरो
को सहमने की आदत सी हो गयी है !!

न खामोश रहा करो इतना की
उजाला न बरस सके सामने
तुम को अपने अंदर गम छिपाने
की आदत सी हो गयी है !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

जीवन के हर पथ का यह साथ निभाती हैं यही बेटीयाँ

तून खुश किस्मत तो है...की तुझे भगवान् ने लड़का दिया
वो कैसा होगा आगे चलकर, कभी यह भी ख्याल है किया

लड़की होने का जैसे, कुछ लोग मातम मनाते हैं
खुदा को धन्यवाद देने की बजाये, दुःख ही मानते हैं 

बेटो से बढ़कर, घर द्वार का साथ निभाती हैं बेटीयाँ
माँ बाप के दुःख दर्द का हर साथ निभाती हैं बेटीयाँ

इन के जन्म का कुछ मोल जो नहीं समझ पाते हैं लोग
एक दिन इन के ना होने से, वो ही पछताते हैं वो लोग

बेटी का गम न करो, बेटे पर कभी नाज न करो
जीवन के हर पथ का यह साथ निभाती हैं यही बेटीयाँ

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

एक ओस की बूँद पड़ जाती है चेहरे पर

अपने गमो को,
अपनी चिन्ताओ को
अपनी बुरी भावनाओ को
अपनी सीलन भरी मानसिकता को

कल धुप जरूर लगवा लेना
कुछ तपिश में सुलग कर
कुछ उस की तरंगो से
उमड़ आएगी खुशियन 

तेरे झुलसे हुए चेहरे पे
कुछ लकीरे जो गम से ढकी थी
खत्म हो जाएँगी धुप में
फिर मुस्कराहट ही
नजर आएगी

खिल जायेगा तेरा चेहरा
जैसे बसंत के आने पर
मन प्रफुलित हो जाता है
एक ओस की बूँद
पड़ जाती है चेहरे पर !!!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

वो "मौत" जो अपने साथ लेकर जाएगी !!!

अँधेरे में जो बैठे हैं
नजर उन पर भी कुछ डालो
अरे...ओ ...रौशनी वालो

सही है...न...

जिन्दगी में उजाला होना जरूरी है
जिन्दगी का खुश रहना जरूरी है
जिन्दगी में मस्त रहना जरूरी है
न जाने कब अँधेरा कर जाएगी ?

जिदगी बेवफा है समझते हैं सब
जिदगी किसी की मोहताज नहीं , मानते हैं सब
जिदगी उधार मिली हुई है .कबूलते हैं सब
न जाने कब मुख मोड़ लेगी ??

जिदगी में प्यार बना कर रखो
जिदगी का ऐतबार बना के रखो
जिदगी का साथ निभा कर चलो
न जाने कब सता देगी यह ???

जिन्दगी , बस जिन्दगी ही तो है
न किसी की हुई है, न किसी की रहेगी
महबूबा तो अपनी..एक ही जानो यारो
वो "मौत" जो अपने साथ लेकर जाएगी !!!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

दुनिया का दस्तूर निराला है

दुनिया का दस्तूर निराला है
जग में तेरा दरबार निराला है
जो भी आया तेरी शरण में
उसका तूने दुःख दर्द मिटा ला है !!

तेरा आशीर्वाद जिसे मिल जाये 
उस का दुनिया में बोलबाला है
गर न हो किरपा उस मानव पर तो
लटका रहता सदा ही ताला है !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

खूबसूरती ....दो दिन की है.

खूबसूरती ....दो दिन की है.
इस पर कभी नाज न करना
शाम होते ही ढल जाएगी
इस का कभी गुमान न करना !!

बड़े बड़े आये..और स्वाद लेकर 
चल बसे .न जाने किस जहान में
यह छल कपट की है दुनिया
इसका कभी ऐतबार न करना !!

चलते चलते सरे राह निगल जाएगी
तेरी जेब से हर चीज फिसल जाएगी
रोके से भी न रूकेगी कोशिश कर लेना
बड़ी जालिम है, तून विश्वाश न करना !!

कहती कुछ और करती कुछ है
समझती कुछ, समझाती कुछ है
जिओ तो जीने न दे मार देती है
इस का कभी सच यकीन न करना !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

बस दिल से हो जा गोरी

लगा ले क्रीम, पाउडर और सारे
कोसमेटिक अपने चेहरे को रंगने में
निखार ले अपने योवन को
मल मल कर गुसलखाने में

पल भर की चमक का क्या फायदा
जब दिल में भरा गुबार इसे दिखाने में
श्रंगार करो तो अपने दिल का करो
जिस की चमक बिखरे सारे ज़माने में !!

कुछ सूरत ऐसी होती है, न चाहती
किसी तरह का श्रृंगार अपने चेहरे पे
कुछ ऐसी होती हैं, रगड़ रगड़ जीवन गुजरा
पर नहीं आती ख़ूबसूरती उनके फ़साने पे !!

जब दिल है मैला, चेहरा सुंदर , काया गोरी गोरी
क्या लेना उस चेहरे से, जिस की चमड़ी हो गोरी
कर्म तो करने की आदत नहीं, बनती है वो गोरी
छोड़ दे चेहरा , बस चमका , दिल से हो जा गोरी !!

बस दिल से हो जा गोरी
बस दिल से हो जा गोरी

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

Sunday 26 January 2014

६५वाँ गणतंत्र हम सब ने क्या सच में दिल से मनाया हम ने ?

कल मनाया..६५वाँ गणतंत्र हम सब ने
क्या सच में दिल से मनाया हम ने ?
क्या अंग्रेजी बेडियन खत्म हो गयी हैं
इस आजाद देश " भारत" से ??

गुलामी की राह, आज भी नहीं मिटी है
इस आजाद भारत देश से
अंग्रेज तो चले गए भारत छोड़ कर
पर अपने संस्कार ., भेंट कर गए !!

तानाशाही, और हिंसा का मार्ग जिस ने
बनाया था, वीरों को कुचल कुचल के
आज भी वो दमन का शिकार हैं यहाँ
इस आजाद भारत देश में !!

"अजीत" लगता है अब अंग्रेज तो
वापिस न आयेंगे, भारत देश में
न जाने कितने वो पैदा कर गए
इस आजाद भारत देश में !!

पुराना ढर्रा, पुराणी रूढ़िया चल रही हैं
पुराणी चीजो को पेंट कर कर गाडिया चल रही हैं
हम जश्न मना मना कर खुश हो रहे हैं
सीमा पर फिर भी दबंगई सर चढ़ बोल रही है !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

Saturday 25 January 2014

कल का इन्तेजार न करना कभी

कल का इन्तेजार न करना कभी
वो कभी आ नहीं सकता
जैसे कोई फ़रिश्ता परलोक गया
वो वापिस जमीं पर आ नहीं सकता !!

कल हम में से कौन होगा
कौन यहाँ पर बाकि होगा
निशान रह जायेंगे बस अपने
कल यहाँ किसी और का मकान होगा !!

दूरिओं को समेट लो, पास आकर
क्यों की रास्ता शमशान का बाकि है
जहाँ न जाने कितने चले गए और
न जाने कितने वहां जाने बाकि हैं !!

पल पल मौत नजर रखती है सब पर
कोई न बच पाया इस की नजर से
ख़ुशी का साथ निभा लो मेरे यारो
आज गुजरा वकत वापिस आ नहीं सकता !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

कल झंडा जरूर फेहराना है

कल झंडा जरूर फेहराना है
यह हमारे देश का खजाना है
रंग यूं ही नहीं चुने हमने
जाकर दुनिया को हमने बताना है !!

लाल रंग किस चीज का है
यह दुश्मन को जाताना है
न समझे कुछ और इसे
सारी दुनिया में अलख जगाना है !!

कतरा कतरा खून से रंगा हमारा
एक इंच भूमि भी है बलिदान की
न समझना कायर कोई हम को
यह देश है भगत सिंह के आन की !!

तोड़ के रख देंगे हड्डियन उसकी
जो अगर पहुच गया इस जमीन पे
लेने को जमीं का जरा सा हिस्सा
गलती से भी,हमारे हिन्दुस्तान में !!

जवान है खून, दौड़ पड़ेगा सीमा पर
न हाथ लगाने देगा भारत महान पर
खींच जाएँगी तलवारे किसी भी वक्त
अगर दुश्मन दिखा हमारे हिन्दुस्तान में !!

जय हिन्द, जय भारत, जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान ,

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

बस अगर आर्डर मिल जाये तो, मिटटी में मिला दें हम उसी तरफ !!

गाने आते जाते रहेंगे
लोग रिपब्लिक मानते रहेंगे
दिखा कर अपनी वीरता के जोहर

दुश्मन को हम पालते रहेंगे ?????

जांबाज है हिंदुस्तान
जांबाज है यहाँ के सैनिक
शूरवीर पैदा होते रहेंगे

फिर भी दुश्मन को हम बचाते रहेंगे ?????

सतरंगी सपने दिखा दिखा कर
आसमान में रंग उड़ा उड़ा कर
सलामी सब की लेते रहेंगे

फिर भी दुश्मन को सँभालते रहेंगे ?????

सीना चौड़ा है सैनिकों का
डरते नहीं किसी के बाप से
दांत बॉर्डर पर खट्टे करते रहेंगे

यारों फिर भी दुश्मन को पाले रहेंगे ?????

उड़ गया सिन्दूर बहनों का
उजाड़ गयी मांग उनकी सीमा पर
कट गए सर सैनिकों के वहां पर

फिर भी नेता हम को चुप कराते रहेंगे ?????

काट दो सर उसका , जो सर उठा दे हिंदुस्तान के तरफ
चीर दो सीना उसका, जो होंसला दुश्मन दिखाए हमारी तरफ
माँ का दूध पिला पिला कर हम ने भेजा है अपने सपूतों को
बस अगर आर्डर मिल जाये तो, मिटटी में मिला दें हम उसी तरफ !!

आप सब को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

बिगड़ न जाये कहीं कल यह मौसम

बिगड़ न जाये कहीं कल यह मौसम
अपना सारा काम आज निपटा लो
गीले कपडे सुखा लो, धुप लगा लो
रजाई और गर्म कपड़ों को धुप दिखा लो

कल यह धुप रहे न रहे, यह मौसम कैसा हो
धुप में जाकर अपने बदन को सेक लगवा लो
कोहरा तो आता जाता रहेगा,क्यूं घबराते हो
हाथ आया समां , बस यूंही न गवा दो !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

यह मौसम की हलकी हलकी फुहार

यह मौसम की हलकी हलकी फुहार
होले होले ले आयी मुझे तेरे द्वार
मन में उठ पड़ी फिर से चहक उठी
नई कलिओं के खिलने की पुकार !!

मन विचलित था, न सूझ रहा था
कुछ करने का न मन उठा रहा था
जब से आयी तेरे आने की पुकार
मन बसंत की तरह खिल गया बार बार !!

आँचल में समेट कर रखने को जी चाहा
की बांध लूं अपने गठबंधन में फुहार
जब गर्म मौसम का होगा आगमन
तो रिम झिम कर लूं मन हो जायेगा साकार !!

तुम आना , और आके फिर न जाना
क्यों की जीवन के बस दिन रह गए हैं चार
मन की उमंग खिल जाती है, योवन की तरह
जैसे हठ्खेलियन करता है, मन मेरा विचार !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

तुम्हारी ख़ामोशी मुझे अच्छी नहीं लगती

तुम्हारी ख़ामोशी मुझे अच्छी नहीं लगती
क्यूं मायूस बनकर जिन्दगी गुजारते हो
दिल को खुश रखों, रखो हर पल पल यूं ही
जैसे की पवन का झोका ,आता है कहीं से !!

कठिन समां तो गुजर ही जाता है 
वो रुकने के लिए नहीं कभी आता है
रुकता तो वो बुझ दिल है, मेरे यार
जिस को जिन्दगी को जीना नहीं आता है !!

तस्वीर का वो रुख सब को अच्छा लगता है
जिस में तेरी काया का दर्शन हो जाता है
कभी उस भाग के भी दर्शन किया करो
जिस पर जालों का पहरा बना रहता है !!

जीवन सुख और दुख का ही तो नाम है
अगर सुख भोगा तो, एहसास कैसे हो दुःख का
यह चला चली का रेला है , मेरे यारा
एक जायेगा, तभी तो दूसरा आएगा उस के बाद !!

न घबरा , न परेशान कर अपने मन हो तून
यह पल भी यूं ही यहाँ कट जायेगा
अपनी ख़ामोशी को तोड़ "अजीत" कहता है
मेरे दोस्त, इस रात के बाद फिर सवेरा आ जायेगा !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

मेरी आत्मा भटकती है, खोई खोई

मन में तू,
जिगर में तून
मेरी सांसो में तून
मेरी धड़कन में तून
बस तून ही तून
तेरे सिवा न ओर कोई
न दिन का चैन
न रात का आराम
तूने मेरी सुध बुध खोई
न रहा कहीं का
न रुकने का जी कहीं

तून है बड़ा परोपकारी
मेरे बांसुरी वाले
तूने ऐसी ललक लगाई
तेरे दर्शन को बिना
न दिल लगता कहीं
जैसे मेरी आत्मा
भटकती है, खोई खोई

राधे राधे
अजीत कुमार तलवार
मेरठ

बस मेरी उन बातों का भी, ध्यान एक बार जरूर रखना !!

तेरी जुल्फों का उड़ना तो नजर आ जाता है
तेरी हर अदा का बल खा के चलना नजर आ जाता है
तेरी एक आह पर मेरी जान का निकलना , शायद
मेरे दिलके टूटने का, तुझे नजर नहीं आता है !!

मैं घुट घुट कर जीवन गुजारता रहा, तुझे क्या मालूम
में तेरी हर आहट पर भी जगता रहा, तुझे क्या मालूम
चाहत तो तेरे प्यार की हर वकत रखता है, यह दिल
तेरी परेशानी को अपना बनाया, यह तुझे क्या मालूम !!

जुल्फों का उड़ना, बल खा के चलना दिखाई देता है
तुझे अपनी रुसवाई का , रुख दिखाई देता है
हम कब रूठे और यूं ही मान भी गए ,तुम क्या जानो
तुम को तो हमारी वफ़ा में, बेवफाई दिखती है,बस यह मालूम !!

प्यार में तकरार तो होती रहती है, जिन्दगी में ध्यान रखना
रूठ कर न मुझ से यूं, मुख को अपने मोड़ के रखना
कभी तनहा गुजर बसर करनी भी पड़ जाये तुम को अगर
बस मेरी उन बातों का भी, ध्यान एक बार जरूर रखना !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

Wednesday 22 January 2014

वो तुम्हारे आने से पहले ही समझ जाती है

माता रानी के दरबार में जाकर,
कुछ लोग रहमत
की दुआ करते हैं

और कुछ लोग अपने 
व्यापार की दुआ करते हैं

कुछ पुत्र की कामना करते हैं
कुछ पुत्री की कामना करते हैं

यानि कुछ न कुछ मांगने
की ही दुआ करते हैं

दुनिया वाले लोगो, जो जाते हैं दरबार उसके
वो तुम्हारे आने से पहले ही समझ जाती है
किस को क्या चाहिए, और किस की सच में
झोली है खाली, और वो सच्चा इंसान है !!

मतलब से क्या जाना वहां, उस का दरबार निराला है
हम ही हैं मुर्ख बन्दे, उस की दुनिया का ख्याल निराला है
दे देती हैं बिना कुछ मांगे, झोलियन भर देती है
इन्सान ही मतलबी हो गया है,वो बिना समझे सब देती है

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

चढ़ा कर धन दौलत भगवान् को

इंसान आज चढ़ा कर अपनी धन दौलत
उस विधाता के दरबार में 
बड़ा अभिमान करता है

क्या वो यह जानता है की 
उस को , भगवान् नहीं
शैतान इस्तेमाल
किया करता है

वो देने वाला है
तून लेने वाला है
तून क्या क्या दे सकता है ??
वो तो तेरे से सब कुछ ले सकता है >>

सब दिया उस का , उसी के कर्म से है
तेरा अपना भी सब उसी के कर्म से है
तेरा अपना कुछ नहीं , इस भ्रम में न जीना
जो आज तेरा है, कल वो किसी और का है

मांगता है तो इंसानियत के लिए कुछ मांग
अपने लिए तो हर इंसान मांगता है
जीवन अगर किसी के काम न आ सका
तो तेरे मांगने में बता,"अजीत" क्या मजा है !!

चढ़ा कर अपना सोना चांदी, धन दौलत और खजाना
यह सोच ले प्राणी यह सब पण्डों के ही काम है आना
यहाँ अब बोलियन लगाई जाती हैं, उच्च खजाने वालो की
हम तो बस एक दुआ लेकर आये हैं, सब का भला कर भगवान् !!

देखें किस की बोली में दम है,
वो तुम से ज्यादा, हम से रजामंद है
हम लालची नहीं, इंसान का भला मांगते हैं
यही दुआ, अपनी झोली फैलाकर , रोज मांगते हैं !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

वो सब जानता है

तेरी इच्छाओं उस को पता है,
तेरी भावनाओ का उस को पता है
तेरी हर बात का उस को पता है
तेरी चलती जुबान का उस को पता है !!

फिर भी तून क्यों भटकता है अँधेरे में
फिर भी तेरा मन विचलित है सवेरे से
फिर भी तुझे चैन नहीं ओ खुदा के बन्दे
बुरे छोड़, रोज किया कर अच्छे अच्छे धन्दे !!

मन को सकूं मिलेगा, मन तेरा शांत रहेगा
नहीं मानता तो भाई कर के देख क्या मिलेगा
जीवन बदल जायेगा, चिंता मुक्त हो जायेगा
मैने किया, तूम भी करों, सच सब बदल जायेगा !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

जिन्दगी जिन्दा दिली नाम है

Jindgee jinda dilli ka naam hai
is ko hans kar gujara karo
maut mehbooba hai samjh lena
wo apne saath hi lekar jayegi

kanto ka taaj agar na pehna 
to kya pehna akar is jivan mein
foolon ka guldasta to har kisi
ke jivan mein dene se acha lagta hai

kyoon arjoo karte ho ki harpal ek sa ho
us pal ka kya jo intejaar mein hai tumhare
khushian to sab ko chahiyen, dukh kyon nahin
dukh bhi tro jivan mein saath hi rahega ya nahin

Ajeet Kumar Talwar
Meerut

Monday 20 January 2014

है न यह धरती..सब से ज्यादा गोल

बीती हुई रात में न जाने कितने चले गए
बीती हुई रात में न जाने कितने पैदा हुए
यह सिलसिला यूं ही चलता रहेगा रोज
यह पढ़कर कई दिन में ही बेहोश हो गए !!

यह खबर नहीं छपी थी यहाँ समाचारों में
यह तो आता रहता है रोजाना विचारों में
कल का सूरज देखें गे या नहीं देखने गे
यह सोच कर न घबराना इन विचारों से !!

यह दुनिया गोल नहीं , यह धरती बस गोल है
यहाँ किसी का नहीं चलता कुछ भी अपना मोल है
यहाँ हम सोते हैं, दुनिया में न जाने कितने खोते हैं
इस भ्रम में बस चलती जाती है ,क्यों की धरती गोल है !!

रात को किया व्यापार पूरा, चल दिया घर की और
रात में आये चोर , और नहीं छोड़ा उस के लिए कुछ और
हमने अपना काम किया, चोरों ने अपना काम अंजाम दिया
अब बता दो मेरे यारो , है न यह धरती..सब से ज्यादा गोल !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

तमन्ना आराम करने की औरो से ज्यादा

तमन्ना आराम करने की  औरो से ज्यादा हम भी रखते हैं
सब से ज्यादा आराम फरमाने की इच्छा हम भी रखते हैं !!

यह पापी पेट जो लग गया आकर इस जिस्म के अंदर
वरना हजारों दिलों में  अपने अरमान हम भी रखते हैं !!

न किसी से मिल सकते, न किसी के पास जा सकते
यह काम का बोझ ऐसा है, बस यहीं याद उनको रोज रखते हैं  !!

इंसान बेचारा, काम के बोझ का मारा , कुछ कर नहीं सकता
चाहत को अपने, हर पल बस यूं ही  यहाँ दबा कर है चलता  !!

ऊपर वाले तूने, क्या सोच कर इंसान को बना कर भेजा धरती पर
वो पल पल यहाँ , काम कर कर के, ऐसे ही है बस मरता  !!

यह भी वैसे तेरा रहम है, की हर इंसान को कुछ न कुछ काम दिया है
सब को मेहनत करने का, कुछ को आराम का बस काम दिया है !!

तेरी याद आती रहे, मेरा काम चलता रहे, दोस्तों का प्यार मिलता रहे
यही ख्वाइश बहुत है, "अजीत" को ,की रहमत का दरवाजा खुलता रहे !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

Sunday 19 January 2014

मेहनत कर, और ले जिन्दगी का आनन्द

मेहनत कर, और ले जिन्दगी का आनन्द
किसी की चीज पर नाज करने में क्या मजा है ??

दो हाथ तुझे भी दिए हैं, काम करने के लिए
उधार मांग  मांग  कर खाने में क्या मजा है ??

जिन्दगी एक थिएटर की तरह हैं ,जहाँ तून अभिनेता है
अब उस में से तून क्या लेता और किसी को क्या देता है ??

हाथ फैलाना इतना आसान है,  कमाना कितना दुशवार
हर बाप अपनी बेटी को तो देता ही है, फिर क्यों बनता लाचार ??  

अपनी मेहनत से भर लेगा  ,घर के तून भण्डार
मांग कर लेगा तो प्यारे , वो चलेगा बस दिन दो चार ??

बेटी उसे ने दे दी, चीर कर सीना अपना, ध्यान रखना
कल तुझे अगर हो गयी बेटियन, न करे कहीं भगवान् ??

दूरदर्शी बनो , न करो गुमान,  आज के इन दिनों का मेरे दोस्तों
जो आज दौलत तुम्हारी है, कल यह बनेगा सामान किसी और का  ??

अजीत कुमार तलवार
मेरठ


जीवन के पथ पर चलता चल

जीवन के पथ पर
तून चलता जा प्राणी
न डर किसी से
न खौफ मन में रख

तेरा भला सोचेगा
ऊपर वाला
इंसान के बस
में कुछ नहीं देने को, 
जो भी देगा, 
वो हो देगा
ऊपर वाला

रास्ता कितना भी
कठिन क्यों न हो ,
उस पर चलना ही
जिन्दगी है,
रुकना तो बुझदिलों
का काम है,
उस से निकलना ही
जिन्दगी है

दुनिया सतायेगी
और रुलाएगी
नहीं कदम बढ़ाने देगी
उस तूफ़ान से
खुद को निकालना
ही तो जिन्दगी है

बस अपने क़दमों को
हमेशां बढ़ाते रहना,
अगर डगमगाने
लगे तो खुद संभाल लेना
कठिनाईयों का दौर है
यूं ही गुजर जायेगा
देखना कल फिर तेरी
जिन्दगी में बनकर
एक नया सवेरा आएगा !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

तुझे बांध लिया पंडितों ने अपने बंधन में

तेरी एक झलक पाने
को मैं दौड़ा घर से
भाग भाग कर
पहुंचा में दर तेरे

बस पहुँच ही
गया था तुझे 
मिलने को में
पर बेबस
हो गया 
पहुँच के
दर तेरे

न मिलने दिया
न तुझे देखने
दिया, मुरझा दिया
मन का कमल
उस ने वहां मेरे

कहने लगे
बड़ी देर से आये
हो, तुम को नहीं
पता यहाँ जागे
है श्याम सवेरे से

अब झलक पानी
है उनकी तो आ
जाना शाम को चार
बजे इस मंदिर में

क्या यही है श्याम तेरे चोखट के पहरेदारो का काम
में तो घर छोड़ के आया, और यहाँ बंद है तेरा धाम
क्या तेरा भी समय है जागने और सोने का मेरे श्याम
बस एक झलक दिखा जय, वहीँ हो जायेगा मेरा काम

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

Thursday 16 January 2014

स्त्री सच तुम महान हो

एक स्त्री ही कर सकती है निर्माण
अपने परिवार का 
एक स्त्री ही कर सकती मजधार
से बेडा पार अपने परिवार का

आज जब देखता हूँ गर्भ 
में हत्या होते हुए बालिका के भ्रूण की
उठ जाते हैं न जाने कितने
तूफ़ान मेरे दिल के अंदर

क्यों कर के यह लज्जा वाला काम ,ओ इस
को पैदा होने से पहले मारने वालो
किस काम का तुम्हारा यह अभिमान
ओ इस जीव की हत्या करने वालो

वो माँ है, वो बेटी है, वो बहन है,
वो पत्नी है, वो दादी है, पड़दादी है
वो मार्ग दर्शक है , वो तेरा सब कुछ है
वो तेरा कर्म सिधारक है, वो तेरा माली है
नमन कर उसका, अभिनन्दन कर उसका
वो तेरी रक्षा करने वाली है

तुझ पर कर्ज बहुत हैं उसके , हे वनमाली
तू भूल स्वीकार कर अपनी, वो तेरी है वनमाली
तुझे पैदा उस ने किया, दर्द सहन कर करके
दुनिया से छुपा कर रखा ,वो कितनी है सहने वाली !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

मासूम का क्या कसूर

एक कूड़े के ढेर पर
एक कपडे में लिपटा
देखा एक नन्हा सा
जीव

क्या कसूर था उसका
क्या पैदा होना भ्रम था उसका
क्या इसी लिए आया था वो
या वो पाप था , किसी और का

जब पालना न था , तो फेंक दिया
जब डर इतना था, तो क्यों किया
एहसास नहीं था शायद उसको
इक माँ का दर्द शायद नहीं था उसको

दुनिया की लाज का डर उसे सताता है
पर ममता का पलना हर पल रोता है
खालीपन का साया हर दम सताता है
पर उस जीव की किस्मत एक धोखा है !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

ख्वाब

ख्वाबों में छुपा कर 
तुम को में रख
लूँगा अपने 
चमन में
जब याद आएगी
तुम्हारी
तो बुला लूँगा
की हम सफ़र
बन कर
मेरी राहों 
में मेरे
साथ साथ
चलना
न भटक जाये
यह राही
बस बनकर
हम राही
तुम मेरे
साथ साथ
ही चलना

कल मिलते हैं
नमस्कार
आपका
अपना
अजीत कुमार तलवार
मेरठ