Saturday 30 November 2013

दिल्ली का नया धमाल

दिल्ली में नया धमाल होगा, देखो जी शीला जी
पुरे भारत में शोर मचा देखो जाकर रामलीला जी
इन्टरनेट पर छा गए पोस्टर हराम लीला जी
कितना जोश होगा जवानी में, देखो अब शीला जी !!

में हाथ का पंजा कर दूंगा सब को गंजा
यह सुनाई देता फिर से मानो शीला जी
मोदी कि दहाड़, मनो उठा लिया सर पे पहाड़
सब कि वाल तोडने को, आगे केजरीवाल जी !!

कमल खिलेगा, या हँसे गा , या राज करेगा केंद्र में
यह सारा दारोमदार समझाएगा मतदाता नव वर्ष में
क्या साईकिल, भी चल पायेगी दिल्ली की सडको पे
कितना धमाल मचाएंगे , मिलकर सब यहं शीला जी

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

Friday 29 November 2013

हँसना ही जिन्दगी है

हँसना ही जिदगी है, रोने से क्या होगा
जो देगा तुझे , वो ऊपर वाला ही देगा
कर्म करना तेरे लिए, वरदान ही होगा
हाथ पे हाथ रखने से कोई फल नहीं होगा !!

गीता का सार, गर दिल में उतार लोगे
में समझता हूँ, दुनिया में दुःख नहीं होंगे
जीवन का यथार्थ स्वीकार कर लोगे
चिंता फ़िक्र सब, पल में काफूर होंगे !!

जीवन देना और लेना सब उसके हाथ है
फिर क्यूं बन्दे करता अपने को बर्बाद है
तेरी हर इक सांस पर लिखा हुआ है नाम उसका
इस लिए लेते रहो हर दम नाम बस उसका !!

चरणों में उस प्रभु के अपना नमन रोज किया करो
चाहे मंदिर, मस्जिद , चर्च या गुरूद्वारे किया करो
होगा उसका आशीर्वाद तो मलाल नहीं होगा
जिन्दगी में खुशिओं का गीता सार उस में होगा !!

में "अजीत" गुजारिश यही करता हूँ रोज खुश रहा करो
तन मन धन से खुश रहकर जीवन अपना जिया करो
कुछ नहीं रखा है, चिंता कर, जीवन जीने में
नाम प्रभु का ले कर सिमरन अरदास रोजाना किया करो !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ



Thursday 28 November 2013

मेरी सुध बुश खो गयी ..बांके बिहारी

जब से देखा बांके बिहारी, तेरा दरबार मैने
सुध बुध सी खो चूका हूँ, तब से श्याम मेरे
अखियाँ तेरे दरस को तरसती रहती हैं 
कब आकर फिर नीर बहऊंगा, अब श्याम मेरे !!

मेरे जीवन का अब आधार तुम्ही हो बिहारी
मेरे जीवन न , कभी बने किसी कि लाचारी
हर सुबह और शाम पुकारू में बिहारी बिहारी
एक बार दरस दिखा जाओ, मेरे मोहन बांके बिहारी !!

घुट घुट कर जिन्दगी , अब मेरी गुजरती नहीं है
सुबह के बाद शाम और फिर रात मेरी कटती नहीं है
किस दिन मेरे पग फिर से तेरे दर पर आयेंगे
यह सोच सोच कर जिदगी मेरी कटती नहीं है !!

तारा है सारा जमाना प्रभु, आप अब मुझ को भी तारो
डगमगा रही है मेरे जीवन कि नईया, प्रभु अब तुम ही सवारों
विरह का जीवन आप कि झलक पाने को तरसता है ,मेरे स्वामी
आकर मेरी डूबती हुई कश्ती को , भगवन लगा दो किनारे !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ


तेरी एक तस्वीर जब से देखी

तेरी एक तस्वीर , जब देखी मैने
तो मुझे जिन्दगी जीने का अंदाज आ गया
में बंदा था सीधा सादा , तेरे ख्यालों में
खोने का नया अंदाज फिर से आ गया !!

तेरा प्यार से देखना , और देख कर हसना
मेरी जिन्दगी को सरोबार सा हो गया
बुझ सा रहा था जीवन मेरा , तेरे अंदाज को
देख कर मेरा , समां खुशगवार हो गया !!

जब तक एक झलक न पा लूं, तेरी तस्वीर की
लगता ऐसा है कि नहीं खुली किस्मत तक़दीर की
खुशनुमा होती है ऐसी जिदगी जिस ने पा लिया तुमको
फिर कमी नहीं रहती है, किसी और चीज की !!

तेरी तस्वीर को दिल के उस कोने में छुपा रखा है
जहाँ न पहुंचे कोई, बस इतना बसा रखा है
झलकता रहता है मेरी पलकों का प्यार हर पल
किसी कि नजर न लगे तुझे दुनिया से दूर बसा रखा है !!

तुझ से एक पल दूर रहना मुश्किल सा हो गया है
तेरे पास आने के लिए दिल बेताब सा हो गया है
इतना प्यार जब तेरी तस्वीर से दिखाई देता है
जब पास आऊँगा तो ,सोच कर दिल खामोश हो गया है !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ


Wednesday 27 November 2013

मतदाता तेरा भ्रम



@@@@@@@@@ मतदाता तेरा भ्रम @@@@@@@@

दुनिया वालो को दारू पिला के
एक दिन को मोटर में घुमा के
मटन चिकेन का स्वाद चखा के
फिर गंदगी का उनको कीड़ा बना के....

मतदान के दिन दूल्हा बना के
घर के पास का कूड़ा उठवा के
बुजुर्गो के हाथ पैर दबा के
सफ़ेद कपड़ों को साफ़ करा के......

सडको को चिकना बना के
खम्बो पर स्ट्रीट लाइट लगवा के
नालिओं की खूब सफाई करा के
गरीबो का खूब मजाक बना के......

गायब हो जायेंगे यह नेता गिरी करने वाले
कमांडो के बीच चले जायेंगे नेता गिरी करने वाले
तुम क्या चीज हो कहाँ से आये हो,क्या वजूद है
तेरा ओ मतदाता,

तुझ जैसे तो सदीओ से रोंदते आये हैं
हम तो दल बदलू हैं, जहाँ कम पड़ेंगे
वहीँ जाकर अपनी सरकार बनायेंगे

वाह रे नेता गिरी..........तेरा भी जवाब नहीं
जब तक नहीं बनता......तब तक भिखारी लगता है
जब बन जाता है..........भगवान् से बड़ा तून लगता है

न रहेगी यह काया, न रहेगी यह माया
काम करो तो इंसान बनो, हैवान बनने में क्या रखा है
गर इंसानियत को पहचान लिया तो भगवान् मेहर करता है
नहीं तो ऐसी जगह मौत देता है, जहाँ पानी भी कोसो दूर रहता है....

जय हिन्द
अजीत कुमार तलवार
मेरठ

तेरे कदमो में मेरा सर झुके

तेरे कदमो में मेरा सर झुके
तो मुझे ख़ुशी होगी
मेरे हाथ तुझे प्रणाम करे
तो यही बंदगी होगी
जमाना देगा भी तो क्या देगा
जो तून देगा मेरे मालिक
उसी से तो मेरे सुने घर
में हर दम रौशनी होगी

तेरे नाम के साथ जुड़े मेरा नाम
यही दुआ करता हूँ सुबह और शाम
अपना आशीर्वाद बनाये रखना मेरे श्याम
बस यह जुबान रटती रहे तेरा हरदम नाम !!

खुशियन जहाँ कि तेरे दर पर हैं
दुनिया कि सारी दौलत तेरे दर पर है
झोलियन खाली लेकर आते हैं सब यहाँ
कौन है जिस को न मिली हों खुशियाँ यहाँ से !!

सब से बड़ा पर्वतदिगार है तून मेरे मालिक
पता नहीं इंसान क्यूं बन बैठा है मालिक
भूल गया है वो , यह तो सब झूठ है
केवल मौत के बाद तुझ से मिलना ही तो
सच है, है न मेरे मालिक @@

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

Tuesday 26 November 2013

कहते हैं..बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो और बुरा...

कहते हैं बुरा मत सुनो, 
बुरा मत देखो और 
बुरा मत कहो,
बुरी है बुराई मेरे दोस्तों.....

कौन कहता है, कि लोग बुरा नहीं सुनते,न कहते, न बोलते
आदत सी पड़ गयी है उनको कान सेकने की
जब तक न सुने बुराई,पेट का दर्द रुकता ही नहीं
रुकता है तो बस कान में फुसफुसाहट सुनने के बाद
किस के घर में क्या हुआ, किस को कितना दहेज़ मिला
किस कि बीवी काम नहीं करती, किस का पति देर से आता है
किस के बच्चे आवारा हैं, किस का बच्चा डिप्टी बन गया है
न जाने क्या क्या होता है, हमारे घर कि गली गलिआरों में

क्यों बना यह गाना, जब सभी को गुनगुनाना नहीं आता है
देख कर बुराई को और ज्यादा ही भड़काना आता है,
रहम करना तो आता नहीं , बस कुछ देर को अपना मन बहलाना आता है
जब गुजरेगी खुद अपने घर पर, तो तमाशा संसार में बनाना आता है,
गली में कौन जा रहा है, बस अपनी टांग अडाना खूब आता है,
कोई अपनी डगर पर कुछ काम करे तो करे,उसका जलूस बंनाना आता है

जिन्दगी गुजर रही है, गाना पुराना हो रहा है,
लोगो का अंदाज हाई टेक जमाने में नजर आ रहा है
बड़े बड़े घरो में , बड़े बड़े दफ्तरों में,
इस गाने का अंदाज अलग हो रहा है
खीच कर टांग , दुनिया खुश हो रही है
अब तो मोबाइल के दौर में
सुनाई, दिखाई, का दौर चल रहा है
कब किस कि हो जाये ,कोंई नहीं जानता
सामने ही सामने रुसवाई हो रही है
यह वो जमाने का गाना बनने वाला नहीं जानता !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

आदरणीय पूज्य पिता जी को नमन

मेरे पूज्नीय पिता जी को मेरा और पूरे परिवार का नमन, आज आपका श्राद्ध है, और में चन्द शब्दों के माध्यम से आप को यह छोटी से भेंट कर रहा हूँ, आपका आशीर्वाद हमेशां परिवार पर बना रहे, और हमें रोजाना, हर पल आप का ध्यान करते रहे, ताकि अपनी बाकी जिन्दगी को आपके मार्गदर्शन से चलाते रहें!! 

पापा, आप ईश्वर के रुप थे, 
पावन सी बेला कि आप धूप थे,
स्नेह भरा स्वरुप थे आप,
खुशियों का आपार भंडार थे आप,
सूर्य का प्रकाश आप से था ,
हम बच्चों के आकाश आप ही थे,
घने पेड़ की छांव भी आप थे,
तुफानों में मजधार आप थे ,
बल, विवेक बुद्धि आप से थी,
साहस की वृधि्द आप से थी,
धैर्य का सागर थे आप,
ज्ञान का भंडार थे आप,
अनुशासन कि पाठशाला आप से थी.
सही मार्ग का मार्गदर्शन आप से था,
सख्त, कठोर, गरम आप थे,
कोमल, तरल, नरम भी आप थे,
आसमान आप थे, वायु भी आप थे,
यज्ञ , मन्त्र आप से था, हवन भी आप थे,
हमारे जीवन का आधार थे आप,
खुशिओं के महकते जज़्बात थे आप,

अजीत"करुणाकर"
मेरठ

में एक ख्वाब हूँ.

यह हकीकत है, कि में इक ख्वाब हूँ,
आत्मा मेरी नही, और में लाचार हूँ,
चल रहा हूँ जिन्दगी के रास्तो पर,
कदम कदम बढ़ता,में अनजान हूँ !!

कितना सकून मिलेगा जब में 
गहरी नीद में जाकर सो पाऊँगा ,
जिन्दगी के रोजाना के झमेलों से
तब पूरा आराम मिल पायेगा !!

कसक बस इतनी हे कि हरि
का दीदार इक बार हो जाये,
उस के बाद दुनिया में चाहे
कुछ मिल पाए या न मिल पाये !!

अजीत "करुणाकर"
मेरठ


नरेंदर मोदी पर एक कविता

आज देख कर प्रचंड रूप,
नरेंदर मोदी के स्वरुप का
वाशिन्गटन तक का किला
हिल गया google सर्च पर !

दुनिया ने माना कि यह
इंसान काम के लायक होगा
दुनिया कि मिलती भावनाओ
को यह नहीं देगा धोखा !

जैसी छवि आज बनाई हे आपने
सारे अरमान संजोये हैं आपने
कथनी और करनी में अन्तर न होने देना,
नरेंदर मोदी हो, और यह सिद्ध कर के रहना !!

आज जरूरत है, बुलंद होंसले वाले इंसान की,
जिस से हिल जाएँ दीवारे पडोसी देश के मकान की
थर्रा उठे वो धरती जहाँ पर पैर पड़ें बलवान के
भारत देश को जरूरत है, तुम जैसे इंसान की !!

इक नई महाभारत कि जरूरत आन पड़ी है देश में,
अपने देश में सब कुछ है, क्या रखा है विदेश में ,
इस मुल्क को वर्ल्ड में ऐसा चमका देना
हर पर घबराहट होती रहे, विदेश में !!

अजीत "करुणाकर"
मेरठ


वो एक एहसास

वो एक एहसास , जिस का आभास 
तेरे आने से पहले मिल जाता है,
और कारवां तेरी यादों को समेटे हुए
मेरा हमराही बन कर साथ निभाता है !!

प्यार के दो बोल सुनने को बेताब
रहता है, इस दिल का घरोंदा
हवा का एक झोका उस को याद
दिलवाने में कर देता है समझोता !!

मंजिलों को पार करते करते गुजर
जाती हैं न जाने कितनी दूरियां ,
तू पास न होकर भी पास का एहसास
दिलवाती हैं मुझे यह दूरिया !!

इक पल में जैसे सिमट जाती हैं
एहसास के इन लम्हों कि दूरियां ,
जब दो बोल तेरे मुखड़े से निकल
कर मेरे साथ , साथ मिटा देती हैं दूरिया !!

यह सच है, कि जिन्दगी कटती नहीं,
एहसास को छोड़ कर यह दूरिया,
सुखद , एहसास ,प्यार का समावेश
आकर मिला देती हैं यह दूरिया !!

अजीत "करुणाकरं"
मेरठ

सब का मालिक एक

जब सबका मालिक एक
तो फिर क्यों बन्दे तू परेशान है ?

जब सब कुछ उसके हाथ 
तो फिर क्यों बन्दे तू हैरान है ?

नित्य कर्म में शामिल करो 
रोजाना हरि का जाप किया करो,

मन के अंदर झांको उस दीये की लों को,
अरे बन्दे जानकर भी तू अनजान है ,

क्या रखा है बाहरी आडम्बरों में,
तू जान न जान , पर वो तेरा राजदार है !!


अजीत कुमार तलवार
अजीत "करुणाकर"
मेरठ

राधा अष्टमी

आज राधा अष्टमी का दिन है, सारा जहाँ राधा राधा से गूंज जाना चाहिए , जय हो राधा रानी जी कि, जय हो राधे सरकार कि, जय हो जय हो........

किशोरी कुछ ऐसा इंतज़ाम हो जाये, 
किशोरी कुछ ऐसा इंतज़ाम हो जाये, 
हो जुबान पे राधा राधा राधा नाम हो जाये, 
ो जुबान पे राधा राधा राधा नाम हो जाये,

जब गिरते हुए मैने तेरा नाम लिया है,
जब गिरते हुए मैने तेरा नाम लिया है
तुने गिरने न दिया मुझे
तूने मुझे थम लिया है,

किशोरी कुछ ऐसा इंतज़ाम हो जाये,
किशोरी कुछ ऐसा इंतज़ाम हो जाये,
हो जुबान पे राधा राधा राधा नाम हो जाये,
हो जुबान पे राधा राधा राधा नाम हो जाये,

अजीत कुमार तलवार
अजीत "करुणाकर"
मेरठ

न मरो पत्थेर

न मारो उठा का पत्थेर, उस फिजां में
यहाँ पर रहने वाले तुम्हारे अपने ही है,
न आग का दरिया बनाओ इस शेहर को
यहाँ बसने वाले तुम्हारे अपने ही है !!

जल का यह चमन राख न बन जाये 
इस चमन में ऐसा कुछ न होने देना,
यह बाग़ बड़ी मुश्किल से खिला है,
मेरे दोस्तों इस बाघ को न मुरझाने देना !!

आपका दोस्त
अजीत कुमार तलवार
मेरठ

नाजुक रिश्ता

यह रिश्ता बड़ा नाजुक होता है, 
जिस में इंसान पता नहीं
क्या क्या खोता है !!

प्यार कि भाषा में कभी कभी
मीठा जेहर घुला हुआ होता है,

जिन पर विश्वाश करो प्यार में
उन से ही मिला होता धोखा है ,

इन रिश्तो कि डोर को टूटने में
जयादा वकत ख़त्म नहीं होता है,

पल भर में टूट जाते हैं, जिन को
बांधने में इंसान सारी उम्र बोता है,

सोचता नहीं उस पल के बारे में
जो साथ साथ बिताया होता है,

चला देता है, गोली और खंजर उस पर
जिस के साथ चलने को वो कसम लेता है,

क्यों हैवानियत को अपने ऊपर ढोता है,
इंसान कि भाषा में क्यों नहीं वो इंसान होता है,

बांध कर उस बंधन को क्यों वो सात फेरे लेता है,
जो अगले ही पल उस कि भावनाओं से खेलता है,

अनजाने में भी किसी रिश्ते का न अत्याचार करो,
सोच , समझ, कर ही रिश्ते का गठजोड़ करो,

ग़लतफहमीओं से घर संसार का सत्य नाश होता है,
बाद पछताता है इंसान जब रिश्ता टूटने का एहसास होता है,

खामियन हर इंसान में होती है,किसी में कम किसी में ज्यादा होती हैं
काश ! अपनी खामिओं का भी तो अपने अंदर विश्लेषण एक बार करो,

अजीत "करुणाकर"
मेरठ

पल की खबर नहीं

पल भर में क्या हो जाये,
किस को खबर है,

पल भर में कौन बिछड़ जाये
किस को खबर है,

रास्ता बस दो कदम का है,
कब सांस निकल जाये
किस को खबर है,

एक रोटी का टुकड़ा उठाने
से पहले कब दम निकल जाये
किस को खबर है

सामने हो कारवां आने वाले
कल का, कब हम इतिहास हो जाये
किस को खबर है,

इस भाग दौड़ की जिन्दगी में
घर से निकलना जरूरी है,
सामने हो मौत खड़ी, यह
किस को खबर है

अजीत "करुणाकर"
मेरठ

एक गुनाह हो गया मुझसे

एक गुनाह हो गया मुझ से,
जिस कि सजा भुगत रहा हूँ,
इंसान बन कर धरा पर आ गया हूँ, 
विवशता और मोह के बंधन में खो गया हूँ !!

न होता जन्म , तो शायद कहीं और होता.
रोजाना कि जिन्दगी में ,इस तरह से तो न खोता,
कितना सहूँ गा इस जीवन कि अभिलाषाओं को,
पल पल , तड़प तड़प कर जिन्दगी में तो न रोता !!

रिश्तो कि बागडोर, केवल मतलब तक ही रहती है,
यह आत्मा सुबह से शाम तक न जाने क्या क्या सहती है,
एक घडी में खुद हँसता, और दूसरी घडी में खुद रोता हूँ,
एक गुनाह हो गया जो मुझ से ,जिस कि सजा भुगतता सोता हूँ !!

 अजीत कुमार तलवार
मेरठ

इंसान

लाख ताकत हो अपने पैरों में
गिर कर संभल सकता है........................इंसान
एक बार जो नज़रों से गिरा जमाने के,
फिर नहीं संभल सकता है.......................इंसान,

जिन्दगी गुजर जाती है,
अपनी साख को बनाने में,ए ...................इंसान,
फिर तून अपनी बनी हुई
साख को क्यों लगा मिटाने , ए.................इंसान !!

अजीत"करुणाकर"
मेरठ

कान्हा का जन्म दिन

आने वाला है मौसम फिर से
मेरे कान्हा के जनम दिन का,
मिल बाँट कर करेंगे ,
श्रृंगार मेरे कान्हा का !!

फिर से वो झलक 
मन को भा जायेगी,
जब किलकारियां कान्हा की
सभी के मन को भा जाएँगी !!

झूले में झूलेंगे मेरे नन्द गोपाल,
बड़ा मन भावन लगे गा संसार,
बस में चल नहीं सकता
पैरों से हो गया लाचार!!

तो देख कर तेरी नगरी में
तेरी लीलाओं का संसार
कान्हा रो रो कर यहाँ
हो रहा मेरा यहाँ बुरा हाल !!

मन में तड़प इतनी है,
कैसे आऊँ तोरी नगरी,
छोड़ गए सब संगी साथी
में पड़ा, यहाँ नहीं मिल रही
तेरे वृन्दावन कि डगरी !!

मेरी दिल की दुआ है,
मेरे कान्हा, कर दो कोंई
चमत्कार , ताकि चलता रहे
सभी का घर द्वार !!

टूटे हुए दिल कि मझदार हो तुम.,
मेरे जीवन के खेवन हार हो तुम,

कर दो आकर उद्धार दोबारा इस जगत का,
क्यों कि जन्म ले लिया हैं कंस ने ,
घर घर हो रहा बहुत अत्याचार
नहीं सुरक्षित कोई, दरोपदी,
और न ही महिलाओं का श्रृंगार!!

अजीत "करुणाकर"
मेरठ


प्यार का रिश्ता

दो इंसानों के बीच यहाँ बस इक प्यार का रिश्ता है,
प्यार पर भरोसा है, तो सारा जहाँ अपना लगता है,
जब तनहा हो जाते हैं, वो प्यार से महफूज़ होने वाले,
तो सारा जहाँ जैसे खोया खोया सा लगता है !!

निकल कर उन वादिओं से, जहाँ प्यार ही प्यार हो,
हर इंसान के साथ मेरा बस, यही एक रिश्ता है,
तनहा जीवन काटना बड़ा मुश्किल, यह जीवन का सफ़र है,
जीवन संध्या बीतने से पहले, बना जाऊं वो प्यार वाला रिश्ता !!

खो कर आज तुम्हारा साथ , मुश्किल लगती यह डगर है,
तुम प्यार से दो मीठे बोल बोल देती हो,जीवन सुंदर लगता है,
रिश्ता तो दुश्मनों का भी बन जाता है , मगर मैने
देखा है, उस में मीठा कम , कडवाहट वाला रिश्ता दीखता है !!

अजीत "करुणाकर"
मेरठ

जो दिल को न छु सकी

जो दिल को न छु सकी में वो कविता लिखना नहीं चाहता
जो दिल को सकूं न दे सकी में वो बात कहना नहीं चाहता
आज फेस बुक पर दिल जोडने को बेताब हैं ना जाने कितने
चेहरे, पर कुछ में जो गलत बात है, में कहना नहीं चाहता !!

अपने दिल से पूछ कर देखो कि क्या बात किसी के दिल को
नश्तर कि तरह चुभ कर दर्द हजारों दे जाती है,
में तो रोजाना इस मुकाम पर पहुंचा हूँ मेरे मिलने वालो
बात ऐसी न कहो,जो खुद को पसंद न हो,खुद को गवारा न हो !!

अजीत "करुणाकर"
मेरठ

मेरी भावना देश के प्रति

मेरी "भावना"
आज अपने देश वासिओं के प्रति और उनके प्रति जो प्रेम को सब कुछ मानते हैं

"भावना " ऐसी पैदा करो,
कि उजड़ा गुलशन भी गुले गुलज़ार हो जाये,
अगर न भी हो किसी को किसी के साथ,
तो भी उस से प्यार हो जाये !!

मानवता तो यही कहती है,
कि दिल न किसी का दुखाओ,
अगर वहां फूल न खिला सको,
तो कम से कम कांटे तो न चुभाओ !!

भाव अगर इंसान के अच्छे होंगे,
भावनात्मक तो बन ही जाएगा,
हिंसात्मक बनते बनते भी वो
मेरे ख़याल से अहिंसात्मक तो
बन ही जाएगा !!

गुलशन को महकाना सीख जाएगा
फूलों को खिला कर महकाना सिख जाएगा
"भावना" से प्यार करते करते वो
भावनात्मक जरूर बन जाएगा !!

अजीत"करुणाकर"

मेरे देश के नौजवान

आज मैने एक कविता देश के नौ जवानो के लिए लिखी है , जो शायद भारत को एक ऐसा देश बना दें , जिस कि सीमा पर पैर रखते हुए दुश्मन के दिल में खौफ पैदा हो जाये, और वो कभी आँख उठा कर भारत को देखने का होंसला भी न कर सके !भारत को कमजोर न समझे कोंई बाहरी तत्व , क्यों कि यह देश है वीर जवानो का अलबेलो का मस्तानो का,

एक जवान कि शहादत देख कर मेरा दिल काँप गया,
क्या कसूर था उसका जो वार उस पर हो गया !!
इस खून का बदला लेने कि कसम हमने खाई है,
इस खून का बदला लेने कि कसम हमने खाई है
दिल में इतनी आग लग गयी है,जो अब न बुझ पायी है !!

जिस्म तो जल गया है उस सैनिक का,राख से यह आवाज़ आयी है,
होंसले बुलंद रखना देश के वीरो, अब जाकर क़यामत कि रात आयी है !!
इस खून का बदला लेने कि कसम हमने खाई है,
इस खून का बदला लेने कि कसम हमने खाई है
दिल में इतनी आग लग गयी है,जो अब न बुझ पायी है !!

छोड़ना न उसको जिस ने मुझ पर वार ,करके सबकी नींद उडाई है,
जज्बा अब नामर्दगी का न रखना वीरो, अब शुरू हमारी लडाई है !!
इस खून का बदला लेने कि कसम हमने खाई है,
इस खून का बदला लेने कि कसम हमने खाई है
दिल में इतनी आग लग गयी है,जो अब न बुझ पायी है !!

में तो चला गया यह भारत माँ के लाल होने की लाज बचाई है,
परिवार मेरा बेघर न हो जाये ,उस की कमान तुम को थमाई है !!
इस खून का बदला लेने कि कसम हमने खाई है,
इस खून का बदला लेने कि कसम हमने खाई है
दिल में इतनी आग लग गयी है,जो अब न बुझ पायी है !!

हम देश पर हमं जान लुटाते रहेंगे,यही कसम हम ने खाई है,
खून का बदला, खून से लेंगे, देश के कोने से आवाज़ आयी है !!
इस खून का बदला लेने कि कसम हमने खाई है,
इस खून का बदला लेने कि कसम हमने खाई है
दिल में इतनी आग लग गयी है,जो अब न बुझ पायी है !!

जय हिन्द, जय भारत
अजीत "करुणाकर"


जय श्री कृष्णा


जय कृष्ण हरे श्री कृष्ण हरे,
दुखियों के दुःख दूर करें,
जय जय श्री कृष्ण हरे .....

जब चारों तरफ अँधियारा हो,
आशा का बहुत दूर किनारा हो,
और फिर कोइ न खेवन हारा हो,
कोइ न खेवन हारा हो,
फिर तून ही बेड़ा पार करे,
जय जय श्री कृष्ण हरे,
जय जय श्री कृष्ण हरे !!

अजीत "करुणाकर"
मेरठ


हे भोले नाथ कृपा बरसाओ

मेरे प्रिय मित्रो प्रणाम,
आज हम सभी के लिए बड़े दुःख की घडी है,
मित्रो परसों उत्तराखंड में आई प्राकर्तिक आपदा से हुए
आहत लोगों को देख कर मैं काफी व्यथित हूँ अतः इस
विपत्ती की घड़ी में मैं उन सभी के साथ पूरी हमदर्दी रखते हुए
इस दुःख को सहन करने हेतु परम पिता परमात्मा से प्रार्थना 
करता हूँ की सभी को सहन शक्ति दें !!

हे भोले नाथ कृपा बरसाओ मानवता पर !
आज का मानव अँधा हो गया है धन पर !!
वो भूल गया प्रक्रति को सताना नहीं था !
मगर अपनी कमाई के प्रति वो सजग था !!

भूल चूका वो सारे रिश्ते इस धरती पर !
लालच में आ कर होटल बनाये तेरी धरा पर !!
पैसे में सब कुछ भूल गया न ध्यान तेरे क्रोध पर !
आज जो हाल हुआ देख खुद रोया अपनी भूल पर !!

धरती से खिलवाड़ नमी को भी न छोड़ा उसने !
आज खुद तो लापता है अछों को भी न छोड़ा उसने !!
भोले की लीला नहीं जाना समां गया जल में !
अपनी करनी दूसरों को भी डुबो गया जल में !!

प्रक्रति को न सताओ ऐ धरती पर महल बनाने वालो !
किसी श्रद्धालू के घर में अँधेरा करने वालो !!
उस की तो दुनिया मिट गयी तुम्हारी करनी करने वालो !!
भगवान् के बनाये नियम के विरुद्ध चलने वालो !!

अजीत "करूणाकर"
मेरठ

इस गुलिस्तान की महका दो

जिन्दगी खत्म हो जायेगी
यह मुझे खबर है !!
कह दूं अलफ़ाज़ जो दिल में
मेरे बाकी रह गए हैं !!

प्यार की दास्ताँ को लेकर
दुनिया में पैदा हुआ था !!
जाने से पहले क्यूं न
लूटा दूं इस को (प्यार) इस जहाँ में !!

वो ऊपर बैठा येही तो पूछेगा
भेजा ही था तुझे इसी के वास्ते !!
तुने वो अलख जगा दी जहाँ में
जिस के लिए मैं भी बेताब था !!

नज़रों में गिर न जाना दुनिया वालों के
नहीं तो ऊँगली मुझ पर उठेगी !!
वो यही कहेंगे सभी के सामने
दर पे तो बहुत जाता था पर
निकला वो अपने वास्ते !!

गरूर करून तो किस बात का
बन्दा मैं सीधा सादा !!
जब जाऊँगा इस जहाँ से
तो कोई हसरत न बाकी होगी
मेरे लिए इस जहाँ में !!

याद करके रो जरूर लोगो तुम उस दिन
जिस दिन मैं न होऊंगा तुम्हारे सामने !!
मैं तो आया था नफरत मिटाने
प्यार बहाने , खुशियाँ लुटाने ,रोशन करने
इस गुलिस्तान को बस महकाने !!

अजीत " करूणाकर
मेरठ 

प्रेम की भाषा जानता हूँ

मैं प्रेमी हूँ, और प्रेम की भाषा जानता हूँ !
अपना बनाना चाहता हूँ, औरो का बनना चाहता हूँ !
प्रेम उस दुनिया से सीखा जहाँ बात होती थी हिंसा की !
मरने की और मार कर खुश होने की !

दिल में दर्द रहता था की इस कौम को बदल दूंगा !
नफरत करने वालो के सीने में प्यार भर दूंगा !
मिटा दूंगा वो दूरियां जो आग बरसाती हैं !
याद तेरी मुझे बस, तेरी याद आती है !!


अजीत कुमार तलवार
मेरठ

उगते सूरज को सलाम

उगते सूरज को सब सलाम करते हैं!!
फिर अडवाणी जी क्यों नहीं स्वीकार करते हैं !!

तुम ने रह कर कौन सा तीर मारा था !!
भरोसा दे कर मंदिर बनाने का सभी को !!
सभी का जब दिल तोडा था !!

आज जब मोदी जी को चुना गया !!
तो क्यूं दिया इस्तिफ्फा तुमने !!
इतना नाराजगी जग जाहिर हो गयी !!
अंदर की कलह साफ़ नजर आ गयी !!

स्वीकार करो, सहनशील बनो !!
उठाओ उस लाल को इस धर से ऊपर !!
जिस ने आज नाम दुनिया में रोशन किया !!
मुखेय्मंत्री नरेंदर मोदी बनकर !!

काम का वो इंसान होता है यहाँ !!
जो टक्कर लेता बढ़ चढ़ कर !!
घबराता नहीं किसी के बाप से !!

जाकर आशीर्वाद दो मोदी साहब को !!
नई क्रांति लाओ जिताओ इस इंसान को !!
जिस के दिल में दर्द है इंसानियत के लिए !!
उखाड़ फेंकेगा वो यहाँ से हैवानियत को !!

अजीत "करूणाकर

अकेला

@@@@@अकेला @@@@@

जीवन में चल ए इंसान तून अकेला,
इस में कभी ,नहीं है कोइ झमेला,
किस के भरोसे कि आशा करता है,
भगवान् तुझ से पहले खड़ा है अकेला !!

गर फंस जाओ तुम किसी भंवर में,
याद रखना उस को हर डगर में,
जीवन पथ काँटों भरा क्यों न हो ?
खुश रखना दिल को हर सफ़र में !!

जिन्दगी अकेला ही चलने का नाम है,
अकेला चला था वहां से, पहुंचा अकेला यहाँ पे,
अकेले के साथ ऊपर वाला है हर पल
फिर डर क्यों लगता है अकेले के नाम से !!

किसी का साथ मिले न मिले तून चल अकेला,
कश्तियाँ जिन्दगी कि पार कर बस तून अकेला,
जीवन कि गहरायिओं को समझ तून अकेला,
जीवन में कांटो का ताज तून पहन बंदी अकेला !!

अजीत "करुणाकर"

गुजरते वक्त में शामिल हो जाऊँगा

गुजरते वकत में शामिल हो जाऊँगा में,
एक तस्वीर बन कर रह जाऊँगा में
खुशिया जितनी भी हैं मेरे दिल के अंदर
आप सभी को बाँट कर चला जाऊँगा में !!

न फरेब जानता हूँ, न छल करना जानता हूँ
दिल पाक साफ़ है मेरा,इसे छोड़ जाऊँगा में,
जितनी जिन्दगी बक्शी है, उस रब ने मुझे,
रोजाना वादा है आप को, हँसता चला जाऊँगा में !!
गमो को सहना सिखा दिया है,वकत ने मुझे
दिल किसी का न दुखे , कभी भी मुझसे,
बस यही कामना करता हूँ रोजाना में रब से,
ख़ुशी ख़ुशी चला आऊँगा ,जब बुलाओ गे मुझे !!

अजीत" करुणाकर"
मेरठ
तेरे इंतज़ार कि घडी बहुत बड़ी है,
में रब से दुआ करता रहा वो आगे बढती रही,
वो लम्हे खतम न हो सके उस दिन,
जिस दिन मैने दुआ कि, वो आगे निकलते रहे !!

सोच तक न सीमित रहा मेरा इंतज़ार,
मुझे करता रहा वो बार बार लाचार,
घडी कि सुईओं को देख होता रहा बेजार,
पर खत्म न होने का नाम ले यह इंतज़ार !!

खुशनसीब हैं वो लोग जो इस से बचते हैं
घडी घडी जा कर न देखते वो घडी हैं
न परेशानी, न कोई दर्द के बेचनी है उनको,
उनको क्या लेना , क्या करेगा कोई उनका इंतज़ार !!

अजीत "करुणाकर"

तेरी एक मुस्कराहट

तेरी इक मुस्कराहट को देख कर,
जीने की आस चहक उठती है,
वरना तो क्या कहें तुम से, सीना
भरा पड़ा है मेरा, गमो के समुंदर से !!

तेरे मीठे बोलों से खिलती है, मेरे
घर - आँगन के गुलशन कि बगिया,
तुझे कोई गम भी हो जाये तो
दर्द हर दम उठता है,रोज मेरे सीने में !!

तेरा मुस्कुराता चेहरा देखने को मैं
पल पल , हर लम्हा बेताब रहता हूँ,
इक कसक सी दस्तक दे जाती है,
जब न देख पता हूँ, तेरा मुस्कुराता चेहरा !!

तून शोभा है, मेरे आने वाले कल की,
तुझ से ही है, यह संसार मेरा सारा,
आशा करता हूँ, खुश रहे तून सदा मेरे पास,
क्या रखूँ, कल क्या होगा, ऐसी में आस !!

अजीत "करुणाकर"


जब भी जी चाह नई दुनिया

जब भी जी चाहा, नई दुनिया बसा लेते हैं लोग,
एक चेहरे पे, केई चेहरे, लगा लेते हैं लोग 
अपने हाथ कि कठपुतली समझ कर 
न जाने क्या क्या सुना देतें हैं लोग !!

जानत अनजाने अगर कुछ के दो इनसे,
नई नई बातें बना लेते हैं यह लोग,
अपने दुखो से तो परेशान होते नहीं हैं
पर दूसरों के सुख में टांग अड़ा लेते हैं यह लोग !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

एक ओस की बूँद

एक ओस की बूँद, जब टकरा जाती है, मेरे बदन से
ऐसा लगता है कि पैगाम भेजा है यह मेरे सनम ने,

रह रह कर यादें ताजा कर देती है ,यह एक बूँद मेरे चमन में,
में प्यासी न रहूँ पिया के प्यार कि यह आकर बताती है बदन में,

उन कि याद का ताजा प्रमाण बन कर महका जाती है यह,
खुशिओं के आकर मेरे बदन में ,नई दुनिया सजा जाती है ये

बेकार ही में अपने मन से बाते किया करती हूँ,कि कहाँ होंगे वो
यह आकर यह जता जाती हे, कि वो मौजूद हैं मेरे इस बदन में

प्यासी धरती को जैसे बरसात में सहारा मिल जाया करता है
बस इसी तरह से मेरे बदन मेंइस बूँद का सहारा मिल जाया करता है

न जाने क्यों मन को मैं समझा नहीं पाती हूँ,
रह रह कर यादों में उनकी पगली हुई जाती हूँ

उनका एहसास बनकर जब यह ओस कि बूँद मेरे से टकराती है
सच कहती हूँ जैसे वो सामने आकर प्यार जताते हैं यह मुझे बतलाती है !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

दामिनी तेरी पीड़ा सही न जाये

दामिनी की मौत के बाद उसकी माँ के ह्रदय की पीड़ा कुछ इस तरह अभिव्यक्त हुई होगी .............

सूरज की पहली किरण सी थी तुम 
सुंदर ओस की एक बूंद सी थी तुम 

परियों सी तुम मेरे दर आई थी 
सुहानी धूप बन कर छाई थी

चिड़ियाँ सी चहचहाती फिरती थी
घरभर में खिलखिलाती फिरती थी

स्वरों में झरनों का छिपा था निनाद
सुन के मन को होता था आह्लाद

उदासी में तुम एक हंसी की दवा थी
मन में तेरी खुशहाली की दुआ थी

मेरे रुदन में तुम हाथों का रुमाल थी
दिनभर घर में करती तुम धमाल थी

क्रोध का मेरे सिर्फ तुम ही ताला थी
मेरे गम में तुम ही एक मधुशाला थी

वह घडिया कितनी निर्मम रही होगी
जब तुम घर से बाहर निकली होंगी

तुम्हें मेने उस दिन टोक दिया होता
घर से निकलने से रोक लिया होता

कैसे वो कष्ट तुमने झेला होगा
वो मानव नहीं दानव ही रहा होगा

दुष्टों को दंड मिलेगा जिस दिन
माँ का दिल धीर धरेगा उस दिन

तुम बिन लगता ये जग अब सुना है
हो गया मेरा दुःख अब तो दूना है

तुम बिन नहीं कटता पल-पल है
प्राण निकलने को अब बेकल है 

जिन्दगी का भंवर

कश्तियाँ किनारों कि तलाश में 
डगर डगर डोलती जाती हैं,
तमनाएं इंसान कि इसी प्रकार
भंवर में फंसती जाती है !!

लोग उस में बैठ कर पानी 
से हठ खेलियाँ करते जाते हैं
इंसान भी तो अपनी अपेक्षाओं
से खिलवाड़ करते जाते हैं !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

दुनिया कितनी निराली है इस जग की

जब तक था जनून , तेरे दिमाग के अंदर, 
तुमने बना कर रखा था, दुनिया को अपना बंदर, 
आज जब सारी दुनिया के सामने, आ गए तुम्हारे कारनामे, 
दुनिया के हाथो ही कर दिए गए आशाराम बापू तुम जेल के अंदर !!

क्या जरूरत थी तुम को , इस भोग विलासिता की,
क्या हवस कि खोपड़ी अभी तक खाली थी तुम्हारे मन की,
खुद तो किया इतना बुरा काम, जब हो गया तुम्हारा खेल तमाम,
नारायण को देकर साईं का नाम,लाइन पर लगा दिया उसका भी ईमान !!

कहते हैं घर का मुखिया, सुधरा हो तो परिवार सुधर जाता है,
तुम ने तो न जाने कितनो का , मुखिया बनकर कितने घर उजाडा हैं,
कैसे उस ऊपर वाले को जाकर अब अपना काला मुख मंडल दिखाओगे,
तुम से अच्छा तो वो लंगड़ा है, जो सामान बेचकर अपना घर तो चलाता है !!

मेरा नमन है उन सब को , जो अपने आत्मविश्वाश से दुनिया में जीते हैं,
तुम को मैने देखा तो नहीं, जब तुम जैसे लोग छुप छुप कर कुटिया में पीते हैं
अपनी मर्दांगनी ही अगर दिखानी थी, तुम को तो जाकर रण में कुछ दिखाना था,
यूं आज ,जब परमात्मा से मिलन कि घडी आई.,तुम को मुँह तो नहीं छुपाना था !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ


हे गौ माता क्या लिखा है विधाता ने..


तेरी तक़दीर यह कैसी लिखी है
विधाता ने,
तून सब कि गौ माता है
तेरा हम सभी के साथ
तो जन्म जन्म का नाता है

चाकू चलाने वाले उन निर्दई लोगो
को क्यूं रहम तुझ पर न आता है
जब तेरे अंदर करोडो रूप में
समाया हुआ खुद वो विधाता है

चाकू कि धार अगर वो खुद
अपने गले पर चला कर जरा देखें तो
पता चलेगा कितना और किस तरह
का दर्द जब अपनी नसों पर होता है !!

मांस खाने वालो , अगर मांस इतना अच्छा लगता है
एक बार मेरा कहा मान लों और चाकू को अपने
किसी दोस्त के गले पर उत्तर दो, फिर उस का मांस
खा कर देखो, किसी गाय का क़त्ल कैसा होता है !!

रूह काँप उठेगी तुम्हारी, जब यह लीला होगी न्यारी,
देखेगी उस प्रचंड रूप को , दोस्तों यह दुनिया सारी
कत्ल करना कितना आसान यह उस निर्जीव का ,
जो कह न सके दुनिया में, अपनी व्यथा यह भारी !!

गाय के कत्ल का बदला, कत्ल से ही लिया जाएगा
खून उस निर्जीव का बहाया तो तुम्हारा भी बहाया जाएगा
गर नजर आ गया अब कोई ,इस के साथ इन्साफ करता धरती पर
मेरी इच्छा यह है, कि सब मिल कर सर्वनाश हमारे हाथ से किया जाएगा !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

रावण कभी नहीं मरेगा

कल मारा "रावण" सभी ने मिलकर
बुझा दिया अस्तित्व उस के पुतले का
ख़ुशी से झूमे सभी नर नारी और बालक
धूम शाम से मना"दशेहरे" का हुआ समापन!!

क्या सच में "रावण" मर गया है ?
क्या सच वो दोबारा नहीं जिन्दा होगा ?
क्या बुराई पर सचाई कि जीत हो गयी ?
क्या खत्म हो जायेगा कलियुग से रावण का डर?

जो लिखा है मैने आज वो , इतिहास में लिखा जाएगा
जब तक इंसान के अंदर का रावण खत्म नहीं किया जाएगा
तब तक कितना दिल को खुश कर लों
यह बुराई का सिलसिला इस धरा पर यों ही चलता जाएगा !!

वो "रावण" हर इंसान के अन्दर पल रहा है
वो "रावण" हर घर का नाश यहाँ कर रहा है ,
जब तक इंसान उस को बाहर निकल न फेंके गा
वो "रावण" रोजाना जिन्दगी में अत्याचार ही करना नजर आएगा !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

क्यों उदास है यह दिल

आज न जाने , क्यों उदास है यह "दिल"
समझ नहीं आता, क्यों बे वजह उदास है यह "दिल"
कहीं ख़ुशी और कहीं गम देख कर,उदास है यह "दिल"
दिल को बहुत समझाया पर फिर भी यह उदास है यह"दिल"

जिन्दगी के मोड़ भी , कितने मोड़ो से मुड जाते हे,
कुछ याद रह जाते हैं, और कुछ हमें भूल जाते हैं,
दोस्तों के साथ किया था, दोस्ती का एक वादा हमने
पता नहीं फिर भी , दोस्त किस मोड़ पर मुड जाते हैं !!

आजमाने का जब वक्त सामने आया, वो हमें यूं ही झांसा दे जाते हैं
तुम यहाँ पर ठहरो मेरे दोस्त, हम अभी किसी से मिलकर आते हैं,
न वो आये, दोबारा उस राह पर, जिन्दगी में तन्हा छोड़ कर चले गए
हम उठा उठा कर अपनी पलकों को, सांसो कि डोर छोड़ यहाँ चले गए !!

धन, दौलत, हवस, वासना, लूट, खसौट, सभी यहाँ कि दौलत है
हम ने तो दोस्तों से वादा किया था, यही हमारी दौलत है
तुम्हारे रहमो कर्म से , संसार में साथ चलने का किया था वादा
बस गुजारिश है, दोस्तों तुम सभी से, यही एक निभाना वादा !!

अंत में यह कहने को मजबूर न होना पड़े, इस दिल के अंदर से
दोस्त दोस्त न रहा, प्यार प्यार न रहा
जिन्दगी हमें तेरा ऐतबार न रहा,
ऐतबार न रहा .......

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

करवा चौथ का गरीबों के साथ मजाक

कल करवा चौथ के दिन को
चैनल वालो ने मजाक बना दिया
चाँद कब निकले गा, कब नहीं
उस का हर शेहर में भुरता बना दिया !!

कौन कितना सज रही है,
किस को किस उपहार से नवाजा है
उस के पति ने, खुलासा करवाने
के लिए लोगो का बैंड बजा दिया !!

इस का कितना बुरा असर होगा
किस कि मानसिकता कैसी होगी
किस का कितना बलबुत्ता है
कौन पति से क्या लेगी !!

किस के पति कि क्या हैसियत है
बेचारा पता नहीं किस लायक है
उपहार देने से ही क्या प्यार बढेगा
सब कम पूंजी वालो को निचा दिखा दिया !!

हर पत्नी के दिल में यह सब देख कर
जरूर ऐसा विचार कभी तो आएगा
कब मुझे भी मिलेगा ऐसा तोह्फ्फा
जैसा चैनल वालो ने रात दिखाया था !!

महंगाई के इस मौसम में घर चल जाये तो
उस से बड़ा तोह्फ्फा पत्नी के लिए पति का क्या होगा
सारा सारा दिन धक्के खा खा कर जो पैसा जोड़ता होगा
बंद करो यह अमीरों वाला ,हमें हमारे हाल का सहारा होगा !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

सूर्य की भांति चमकता रहे यह मेरा देश

सूर्ये कि भांति चमकता रहे यह देश मेरा
दुनिया के नक्शे पर दमकता रहे देश मेरा
दुनिया भर के देश सलाम करते रहे इसको
क्यों कि सब से जान दर है यह देश मेरा !!

मर मिट जाऊं इस देश कि खातिर न होगा मलाल मुझको
हवा, पानी, भूमि , आकाश, जल से है प्रेम मुझको
गर दुश्मन आँख उठा कर देख ले तिरछी नजर से
बस दिल करता है, ईसी वक्त कफ़न पहना दूं जाकर उसको !!

देश कि सेना का जोश किस बहरी मुल्क से छुपा नहीं है
जोशीला अंदाज हैं इन सैनिको का कभी रुका नहीं है
छुप कर वार करते हैं आंतकवादी इन बे हथियार सनिकों पर
जब हथियार हों हाथ में तो फिर इस से बुरा कोई नहीं है !!

नेता गिरी का देश है , भरा पड़ा है, नेतागिरी के आर्डर से
काश हर सैनिक के हाथो होता आर्डर तो दीखता जोश जवानो में
बर्बाद कर देते उन सभी के आंतकवादी होसलो को
जो आँख उठा, देख लेता , भारत माता कि उस सीमा को !!

गाँधी गिरी ने जब नीचा दिखा कर थप्पड़ दूसरा खा लिया
दुनिया भर ने दोस्तों, भारत माता को नीचे दबा लिया
वो लोग अब परलोक सिधार गए, जब कभी ऐसा होता था
अब वो होता है, भारत में, जो पहले कभी नहीं होता था !!

किसी चीज कि कमी नहीं है, भारत माता कि सुनो गोद में
हर घर का एक एक लाल कुर्बान हो जाता है इस कि गोद में
में "अजीत" पैदा हुआ भारत माता तेरी ममता कि ही गोद में
कुर्बानी अगर चढ़ जाऊ, तो कोई मलाल नहीं, तेरी इस गोद में !!


अजीत कुमार तलवार
मेरठ

दुखी एक गरीब इंसान

शाख के सुखे पत्तों सी भरी है तेरी जिन्दगी
ए गरीब परिवार में जन्म लेने वाले
दुखी इंसान...

आज रोजगार तेरे लिए नहीं करता 
तेरा इंतज़ार...
तेरी जिन्दगी में हर ख़ुशी तेरे लिए
नहीं बनी है...
वो तो बनी है बस तुझे सताने के लिए
दुखी इंसान .....

कौन से जन्म का बदला चूका रहा है
भटकता इस बगिया में...
तेरे लिए नहीं यह दुनिया, बस बनी
है औरो के लिए....

तार तार होती तेरी यह जिदगी बड़ी
विरानगी समेटे हुए है...
ख़ुशी तो जैसे तेरे चेहरे को छूती चली
दूर जा रही है...

खुशिओं को दूर से ही देख कर तुझे
सकून करना पड़ेगा
पल पल तिल तिल जीवन गुजारने
को तुझे जीना पड़ेगा....

विवशता के बंधन में बंधा तेरा जीवन
तेरी संगिनी को भी जीना पड़ेगा
होने वाले बच्चों को भी तेरे कर्मो के साथ
मजबूर नाता जोड़ना पड़ेगा....

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

एक गरीब घर की दिवाली

हर रंग में तून,
हर रूप में तून.
तेरा नूर दुनिया से आली है,
मुझे भी बता भगवन
कुछ उपाय
दिवाली पर मेरी तो 
अलमारी खाली है....

एक लाचार, गरीब , के दिल कि दुआ 
सुन ले ओ दुनिया के रखवाले
दुनिया तो अपना घर साफ़ कर रही,
मेरे घर में तो लगे हैं जाले ही जाले

तेरी रहमत बरसती है पैसे वालो की पुताई में,
तूने गरीब क्यों बनाया ,रह गया बेचारा मुरझाई में,
सोच सोच कर तेल लाऊँ या दिवाली का दीपक जलाऊ,
या घर का चूल्हा जलाऊ, इस महंगाई में ....

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

पैसे से ही पैसा ...

कहते हैं, दुनिया में ...
पैसे से ही पैसा बनता है....
धन दौलत के व्रक्ष क्यों
उनके घरों में ही लगते हे

कोई कोई तो मेहनत 
करते करते मरता
परंतू फिर भी यह पेड़
वहां क्यों नहीं पनपते हैं....

चापलूसी कर कर के
चपरासी भी आज
करोड़ पति बन बैठा है.
और एक कामगार
हाथ का स्किल कर्मचारी
बस हाथ ही मलता है......

अजीत कुमार तलवार
मेरठ