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जिन्दगी तेरे को इम्तेहान देता देता
में थकता जा रहा हूँ
तू रूकती ही नहीं
और में बेव्बस सा होता ही जा रहा हूँ !!
गुलामी की जंजीरे आजतक
पीछा छोड़ने को तयार नहीं
पता नहीं क्यूं यह नया माहोल तू
त्यार करती जा रही है !!
पता नहीं क्या चाहती है तू
कुछ पाने से पहले दखल दे देती है तू
परेशानी ही बढती जा रही है
पता नहीं क्यूं साथ नहीं देती है तू !!
क्या मिलता है तुझ को यूं
मेरा मन दुखा दुखा कर के
में इक पल की ख़ुशी तलाश करने के लिए
तेरे इम्तेहान ही दिए जा रहा हूँ !!
अजीत तलवार
मेरठ
जिन्दगी तेरे को इम्तेहान देता देता
में थकता जा रहा हूँ
तू रूकती ही नहीं
और में बेव्बस सा होता ही जा रहा हूँ !!
गुलामी की जंजीरे आजतक
पीछा छोड़ने को तयार नहीं
पता नहीं क्यूं यह नया माहोल तू
त्यार करती जा रही है !!
पता नहीं क्या चाहती है तू
कुछ पाने से पहले दखल दे देती है तू
परेशानी ही बढती जा रही है
पता नहीं क्यूं साथ नहीं देती है तू !!
क्या मिलता है तुझ को यूं
मेरा मन दुखा दुखा कर के
में इक पल की ख़ुशी तलाश करने के लिए
तेरे इम्तेहान ही दिए जा रहा हूँ !!
अजीत तलवार
मेरठ
जिन्दगी तेरे को इम्तेहान देता देता
में थकता जा रहा हूँ
तू रूकती ही नहीं
और में बेव्बस सा होता ही जा रहा हूँ !!
गुलामी की जंजीरे आजतक
पीछा छोड़ने को तयार नहीं
पता नहीं क्यूं यह नया माहोल तू
त्यार करती जा रही है !!
पता नहीं क्या चाहती है तू
कुछ पाने से पहले दखल दे देती है तू
परेशानी ही बढती जा रही है
पता नहीं क्यूं साथ नहीं देती है तू !!
क्या मिलता है तुझ को यूं
मेरा मन दुखा दुखा कर के
में इक पल की ख़ुशी तलाश करने के लिए
तेरे इम्तेहान ही दिए जा रहा हूँ !!
अजीत तलवार
मेरठ
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में थकता जा रहा हूँ
तू रूकती ही नहीं
और में बेव्बस सा होता ही जा रहा हूँ !!
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पीछा छोड़ने को तयार नहीं
पता नहीं क्यूं यह नया माहोल तू
त्यार करती जा रही है !!
पता नहीं क्या चाहती है तू
कुछ पाने से पहले दखल दे देती है तू
परेशानी ही बढती जा रही है
पता नहीं क्यूं साथ नहीं देती है तू !!
क्या मिलता है तुझ को यूं
मेरा मन दुखा दुखा कर के
में इक पल की ख़ुशी तलाश करने के लिए
तेरे इम्तेहान ही दिए जा रहा हूँ !!
अजीत तलवार
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तू रूकती ही नहीं
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मेरा मन दुखा दुखा कर के
में इक पल की ख़ुशी तलाश करने के लिए
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मेरठ
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क्या मिलता है तुझ को यूं
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तेरे इम्तेहान ही दिए जा रहा हूँ !!
अजीत तलवार
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