Tuesday 25 February 2014

तकदीर का खेल देखो, कैसे खेला जा रहा

तकदीर का खेल देखो, कैसे खेला जा रहा
बंदा अपने कर्मो से अपने गुनाह कर रहा
किस्मत भी साथ दे देती है उनकी यहाँ
और वो गुनाह पर गुनाह किये जा रहा !!

फंसा कर अपने प्रेम जाल में खुद को भी
सितम अपने दिल पर वो खुद ही ढा रहा 
कहता है फुर्सत ही नहीं मिलती तेरे लिए
बस यह मन ही उसका अब यहाँ भा रहा !!

चिराग बुझा कर अँधेरी रात में सब कुछ
उस तक़दीर के साथ साथ है बुझा रहा
देखा है "अजीत" ऐसे कुछ लोगो को मैने
जो अपने हाथों से ही अपना घर जला रहा !!

किस्मत उस की जब की उस के साथ साथ
उस गुनाह को कबूल करवा रही है
वो अनजान इतना बन गया है की जीवन रूपी
जलता हुआ चिराग, खुद बा खुद बुझा रहा !!

अजीत तलवार
मेरठ

@@@@@@@ !!!!! नमस्कार प्रेम की साथ !!!!! @@@@@@@

@@@@@@@ !!!!! नमस्कार प्रेम की साथ !!!!! @@@@@@@
---------------------
जमाने को देखा है,
पर उस में तू नजर न आया
क्या करे हम सब का
जहाँ मेरा प्यार नजर न आया !!

उल्फ़ते बहुत हैं 
मालूम है जानता भी हूँ
पर क्या करें उसका भी
जहाँ पर मेरा यार नजर न आया !!

तनहाई डस रही है
कौन उस को रोकेगा अब
कितना खुशग्वार है मौसम
पर उसमें भी तू नजर न आया !!

प्यार की बात कर बस
प्यार से मन को सरोबार कर
उस प्यार से भी मैंने बुलाया
पर मेरे यार तू नजर न आया !!

अजीत तलवार
मेरठ

वो मुझ को, मैं उन को आजमाता रहा

वो मुझ को, मैं उन को आजमाता रहा
मैं मनाता रहा, और कुछ जताता रहा
उम्र गुजरने का कगार पर आ पहुंची
न वो समझी ,की में क्या क्या समझाता रहा !!

प्यार को शर्तो पर तोल तोल कर
वो मुझ से नए नए बहाने बनाता रहा
न जाने क्या दिमाग में भर रखा था 
पर फिर भी में उस को सीधे रस्ते लाता रहा !!

लत लग गयी थी न जाने किस धुन की
उस को लगाता हुआ मुझ से वो छुपाता रहा
लाख समझाया की प्यार तो प्यार ही रहेगा
पर फिर भी वो अपनी धुन में वार चलाता रहा !!

कशमकश जब दिमाग में भर रखी है तो
फिर भी मै गीत उस को मिलन के सुनाता रहा
वो सुनता रहा, गुनगुनाता रहा , सोचता रहा
पर बस इक पल में मुझ से दामन छुड़ाता रहा !!

अजीत तलवार
मेरठ

तेरा प्यार , तेरा करार और तेरा वो इन्तेजार

तेरा प्यार , तेरा करार और तेरा वो इन्तेजार
सब में दीखता है, बस तेरा प्यार ही प्यार
तून प्यार की मूरत है सच ओ मेरे यार
फिर क्यों न करून तुझ से प्यार बार बार !!

उन लम्हों की कसक बन कर आ जाती हो
जिस में से भी आती है , खुशबू की फुहार
इक झरना सा मन को शीतल कर जाता है
जब पड़ती हे चेहरे पर बनके वो सारी धार !!

मन शीतल , चितवन सा बन नाचता है तब यार
कितना प्यार बरसा जाता है , करता नहीं बेकरार
हवा भी साथ साथ उसके गूँजती नजर आ जाती है
जब इक झोका उड़ा कर ले आता है तुम्हारा सारा प्यार !!

उस लम्हे को बाँध कर रखने को रहता है, मन बेकरार
कोयल सी कूक, मुरली सी मधुर मिठास, औ दिलदार
शायद तेरे आने का आगमन का आभास करवा जाती है
यह सब मिलकर, पवन, बहार, कोयल औ मेरे यार !!

अजीत तलवार
मेरठ

संगीत ही मेरा साथी

संगीत ही मेरा साथी
संगीत ही मेरा सारथि
गुजरता हूँ जब में
कहीं से भी अकेला
वो लम्हों को अपने
संगीत से मन को
मेरे रोज है भाती !!

रस्ता न जाने कहाँ
कब कब कट जाता है
वो सुरीली धून मुझे
मन को सुना सुना कर
इतना खुश कर देती
है, की न जाने
मैं कहाँ कहाँ
खो जाता हूँ !!

याद में तेरे ओ
सजन मेरे,
रास्ता इतना
मधुर हो जाता है,
की लगता है
जैसे की तेरी याद
नहीं तून हमसफर
बन के साथ निभाता है !!

अजीत तलवार
मेरठ
09310334135

@@@@@ हाथ पीले कर दो न माँ @@@@@

@@@@@ हाथ पीले कर दो न माँ @@@@@

ओ माँ, यह हाथ पीले सुना है बहुत
क्या बता सकती है तू , होता है यह क्या
कल रात शादी में पड़ोस में सब कह रही थी
अच्छा हुआ , की हाथ पीले हो गए उसके, !!

ओ माँ, तून बता न, कब होंगे हाथ पीले मेरे
ला हल्दी , कर जल्दी ,मेरे मन को शांत कर
कितना आसान है, हाथ को ऐसे पीले करना
नहीं जो जाकर रसोई से में ले लूंगी हल्दी !!

सुनकर इस बात को मन बड़ा व्याकुल हुआ
अपनी नन्ही सी जान ने यह क्या धमाल किया
अगर होता बेटी सब वो सामान, तो कर देती आज
बना लेती तेरा इक आशियाना , ले आती घर मेहमान !!

इक छोटी सी पूँजी से, कैसे होगा यह समाधान
बस बेटी तेरा यह काम जल्द ही करेंगे भगवान्
तुझ को वो सब मिले, जो न मिल सका तेरी माँ को
तेरा दामन सदा खुशिओं से भरा रहे, बस सब मिले तुझको !!

डर लगता है, की जब हो जायेंगे हाथ तेरे पीले बेटी
न जाने कैसा मिलेगा वर, घर तुझको ओ मेरी बेटी
बड़े नाजो से पाला है तुझको हम ने मिल कर ओ बेटी
जिस तरहां से इस घर खेली, बस वैसा ही मिल जाये बेटी !!

अरमान बहुत हैं दिल में, तेरा सदा सुखी रहे घर द्वार
हर ख़ुशी सदा तेरे आँगन में मिले तेरा चलता रहे संसार
तुझे हाथो में उठा कर रखे वो , जो तेरा बने वह प्यार
"अजीत" तुझे सदा मिलता रहे , हमारा शुभाशीष !!

अजीत तलवार
मेरठ

Sunday 23 February 2014

लिख दो जो आज लिखना है

लिख दो जो आज लिखना है, 
कल किस ने देखा है यार
पता नहीं मौसम कैसा होगा
कहीं हो न जाएँ, बीमार !!

बात दिल की दिल में
न दबा के चले जाना
आना चाहे न आना
पर न बनाना, कोई बहाना !!

अश्को का क्या वो तो
यूं ही बहते रहेंगे
आप बस हमारे हैं
हम यह कहते रहेंगे !!

ajeet talwar
meerut

शमशान के पास से गुजरते हुए

शमशान के पास से गुजरते हुए
यह ख्याल आया की , 
ओ क्या 
सोचता है, यह तो चला गया
अब तुझ को भी तो जाना है !!

जिस घर तून रहता है
उसका मालिक कोई और है
जा जाकर देख ले वहां
तेरे मरने का सामान जुटा रहा वो !!

काट ले चार दिन हंसी के वहां
यहाँ तो तुझको आना ही है
जीना तो पड़ेगा सब की खातिर
बस आने वाला वो महिना है !!

चन्द पलो में वो तुझो को
गैरो की तरह से करेंगे
इन लकड़ों में सजा कर
तेरा मुझ सा हाल करेंगे !!

न यहाँ शोर होगा
न कोई चिलायेगा
तेरा ही अपना यहाँ
तेरी चिता जलाएगा !!

अजीत तलवार
मेरठ

ओ इंसान, तून कितना खुदगर्ज है

ओ इंसान, तून कितना खुदगर्ज है
पता नहीं चल पाता, तेरा क्या मर्ज है
तुझ को तो इंसान बनाया था उसने
तून खुद ही हैवान क्यों बन बैठा,ये दर्द है !!

तूने मंदिर बनाये, मस्जिद बनाई
रास्ते के रोड़े खड़े कर दिए जहान में
एक धर्म निभाने की खातिर
न जाने क्या क्या कर्म कर दिए, ये दर्द है !!

ओ इंसान तूने अपनी जात पात के झगडे
डाल डाल कर उलझा दिया मनुष्यता को
कभी देखा है किसी पक्षी को यह करते हुए
जो मंदिर, कभी मस्जिद पर जा बैठता है !!

कुछ सीखना है तो इन परिंदों से सीखो
जो अपनी जान कुर्बान कर देते हैं बे वजह
इंसान तो अपनी आन बान शान की खातिर
झगडे कर लेता है, बे वजह, बस यही दर्द है !!

अजीत तलवार
मेरठ

तकदीर का खेल देखो

तकदीर का खेल देखो, कैसे खेला जा रहा
बंदा अपने कर्मो से अपने गुनाह कर रहा
किस्मत भी साथ दे देती है उनकी यहाँ
और वो गुनाह पर गुनाह किये जा रहा !!

फंसा कर अपने प्रेम जाल में खुद को भी
सितम अपने दिल पर वो खुद ही ढा रहा 
कहता है फुर्सत ही नहीं मिलती तेरे लिए
बस यह मन ही उसका अब यहाँ भा रहा !!

चिराग बुझा कर अँधेरी रात में सब कुछ
उस तक़दीर के साथ साथ है बुझा रहा
देखा है "अजीत" ऐसे कुछ लोगो को मैने
जो अपने हाथों से ही अपना घर जला रहा !!

किस्मत उस की जब की उस के साथ साथ
उस गुनाह को कबूल करवा रही है
वो अनजान इतना बन गया है की जीवन रूपी
जलता हुआ चिराग, खुद बा खुद बुझा रहा !!

अजीत तलवार
मेरठ

!!!! नमस्कार प्रेम की साथ !!!!!

@@@@@@@ !!!!! नमस्कार प्रेम की साथ !!!!! @@@@@@@
---------------------
जमाने को देखा है,
पर उस में तू नजर न आया
क्या करे हम सब का
जहाँ मेरा प्यार नजर न आया !!

उल्फ़ते बहुत हैं 
मालूम है जानता भी हूँ
पर क्या करें उसका भी
जहाँ पर मेरा यार नजर न आया !!

तनहाई डस रही है
कौन उस को रोकेगा अब
कितना खुशग्वार है मौसम
पर उसमें भी तू नजर न आया !!

प्यार की बात कर बस
प्यार से मन को सरोबार कर
उस प्यार से भी मैंने बुलाया
पर मेरे यार तू नजर न आया !!

अजीत तलवार
मेरठ

Thursday 20 February 2014

ऐ दिल, तुझ को क्या मिला

ऐ दिल, तुझ को क्या मिला
उन से यूं दिल लगा के
तेरा चैन भी छीन लिया 
उसने तुझे यूं बहका के !!

रात और दिन का तून
बावला सा बन घूमता है
अपनी कुछ कहता नहीं
बस उसकी ही सुनता है !!

घर हो या बाहर तेरा
अपना ख्याल डगमगा गया
है, तून पागल सा बन हर
पर उस को ढूँढता है !!

नादाँ है तूं पागल और
बेचैन सा हो चला है
तेरा दिल शीशे के जैसा है
वो तो पत्थर दिल है !!

खुद छीना है तूने अपना
दिल का चैन ओ सितम
अब डगर डगर बेचैन रहेगा
और वो सोयेगा , बेखबर !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

कुछ लोग अर्थी पड़ी देख कर

कुछ लोग अर्थी पड़ी देख कर
कुछ यूं ही जाता देते हैं
तुम कहाँ चले गए
तुम नहीं जा सकते

क्या फायदा है यह करने का
क्यू बेकार वो अपना गला
भी सब के साथ मिलकर
खराब हैं करते !!

जाने वाला तो जा चूका
क्यूं जमाने को दिखाते हो
जिन्दा जी तो आदर नहीं किया
अब आंखे फाड़, क्यूं आंसू बहते हो !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

अपना वजूद बना के रखो

अपना वजूद बना के रखो
अपना रूतबा बना के रखो
कायर न बनो न बनने दो
अपने सांस में मुझ को बसा के रखो !!

धड़कन धडकती है बस तेरे लिए
सांस भी नाम लेती है तेरे लिए
तुझ को मिलने का दिल करता है 
ओ हमसफर, अपनी तुम आस बंधा के रखो !!

कभी तो मिलेगा वो समां
जब मुद्दत के बाद होगी मुलाकात
गुजारिश है उस खुदा से उस के लिए
उस वक्त की इन्तेजार दिल में बसा के रखो !!

अजीत तलवार
मेरठ

इक महल बनाते हैं, सपनो का

आ चल, इक महल बनाते हैं, सपनो का
न ईंट , न सीमेंट, न बदरपुर, न सरिया
बस सपनो में रहना , बाहर न जाना
बाहर चला गया तो, पीछे पड़ जाएगी दुनिया !!

मन कितना आजाद होगा, न कोई पहरा होगा
वो सितारों सा आसमान, घर कितना न्यारा होगा
न चिक चिक , न कोई किसी परकार का झंझट
बस सपना वो सब से ज्यादा , सुनहरा ही होगा !!

मिलने आ जाना, जब दिल करे तेरा मिलने का
मिल बैठ कर वो सारी बातें, तू सुना जाना वहां
कम से कम दुनिया तो न होगी वहां पर ,अपने सिवा
कुछ कह जाना, और कुछ सुन जाना , आकर वहां !!

अरमानो का मखमल सा सुंदर वो बिस्तर होगा
किसी राजा की शयन कक्ष से , क्या वो कहीं कम होगा
सकूं से रात गुजर जाएगी, बस वो सपना मेरा होगा
देखना तून जरूर, वो समय निकल, आ जाना वहां !!

अजीत तलवार
मेरठ

तारीफ तेरी ऐ दोस्त

Confirm thy praise Hey dude, what
did you spend with me the whole day
I wrote, the Toon reads,
hast for me, my heart convinced!!

, I've fallen into a habit
of writing a good bit  
the dust out of your heart Should
the tune, along with me, took my time to spend!!

Thank you so does your love
for someone who is out of time but
you probably deserve some portions were
a tune, along with, I made ​​my own!! Ajit Sword Meerut


कोई गुनाह तो नहीं किया

मैने तुम को पसंद किया
तो कोई गुनाह तो नहीं किया
तुम ने न जाने क्या किया
हम को छोड़ , दूजे को पसंद किया !!

शायद फितरत ही कुछ
ऐसी है हुस्न वालो की
की वकत आने पर चेहरा
भी बदल लेते हैं,दूजे के लिए !!

अजीत तलवार
मेरठ
09310334135

Saturday 15 February 2014

@@@@@@ भिखारी का सफ़र @@@@@@

@@@@@@ भिखारी का सफ़र @@@@@@

दर दर ठोकर खाता जाता एक
लंगड़ा सा, और अँधा सा भिखारी
एक डंडे के सहारे, सहमा सहमा सा
किस से मांगू, किस से न मांगू
पर मांगना थी उस की लाचारी !!

न घर था उस का न कोई था ठिकाना
पर समझते थे लोग शायद है 
यह इस कोई नया बहाना
लाचार था अपनी मजबूरी से वो
पल पल गुजरती हुई दूरी से वो
पास से गुजरती हुई गाडिया
ठेस पहुंचा जाती थी, और बेचारे
को सब से मिल रही थी गलिया !!

हे राम, क्यूं मुझ को बनाया तूने
अँधा और लंगड़ा भी कर दिया
रहम की भीख मांग मांग कर
तूने बड़ा गन्दा यह कर दिया
कोई समझता की में जान कर करता हूँ
किस को बताऊँ की यह में क्यूं करता हूँ !!
घर पर है अंधी माँ, और लंगड़ी बीवी
जिस की खातिर में दर दर भटकता हूँ !!

मर्द हूँ, न घर से निकलना उस की थी मजबूरी
न जाने अंधी को देख कर क्या हो जाये मजबूरी
वो घर कब आएगी यह कैसे बता पाता उन सबको
खुद ठोकर खा लूँगा, पर इज्जत तो रहीगी बची मेरी !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

@@@@ एक पक्षी का दर्द @@@@

@@@@ एक पक्षी का दर्द @@@@

सकूं से बैठा था एक परिंदा
की कुछ पल गुजार लूं
तेरे दर पर आते हैं न 
जाने कितने मांगने वाले
में भी कुछ मान लूं !!

पर मेरी आवाज निकलने से
पहले, वहां आने जाने 
वालो ने इक पथेर मार के
मुझ को वह से भगा दिया !!

क्या मिला उनको यह कर के
मेरा दिल सब ने दुख दिया
पुकार मेरी भी सुन लेना
कल पेड़ से भी उसने मुझे उड़ा दिया !!

पिन्ब्जरे में रख कर सताया बहुत
उनके छोटे बच्चे ने वहां से निकल दिया
अब अपना आशियाना कहाँ पर बनाऊं
इस बात को लेकर आया था,
वहां से भी राहगीरों ने मुझे सता दिया !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

Friday 14 February 2014

सुबह का वकत

सुबह का वकत, जब भोर हो रही
मन को मेरे आज झकझोर वो रही
वो बीती चांदनी सी रात , आज 
सुबह का इन्तेजार ,फिर रात हो रही !!

कसक सी दिल में उमड़ रही
मन को फिर से बेकरार कर रही
शीतल चंचल सा , यह जिगर
मिलने की आस में ,बोर हो रही !!

टपकती वो बारिश की बूंदे, मेरे
बुझे से इस मन को हर्षित कर रही
बस यह कह रही , न कर मन
उदास , मैं यह सन्देश दे रही !!

रात की वो उदासी, चांदनी की रात ने
अपने शीतल मय प्रकाश से मिटा डाली
फिर से भोर हो चली, उस सूरज की
रौशनी, मुझ को झिंझोड़ फिर रही !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

वो बारिश

वो बारिश ने खलल डाली ऐसी
की खुद भीग गया तन मेरा
टप टप बारिश ने सुबह से
ही खूब भर के मजाक किया मेरा !!

वो बादल का गर्जना, यूं धमका कर
मेरे जेहन को आ आ कर गरजा कर
मेरे चितवन में अपना शोर सुना कर
भिगो गया, सरे राह घुमा घुमा कर !!

सड़को को तालाब सा बना कर
सोते हुए मेंढक को हंसी बना कर
गेहूं की फसल को लेह लहा कर
कम्पन छुड़ा गया, मुझे यूं भिगो कर !!

वो सुख गया घर उसका, जिस का है पक्का
उस का क्या जिस का घर रहा हमेशा कच्चा
सारी रात वो टपकती बूंदों को निहारता रहा
जैसे में, सरे राह बारिश के रूकने की गुहार कर रहा !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

Thursday 13 February 2014

यह रिश्ते

एक रिश्ते को सँभालने में
इंसान खुद अपना रिश्ता
भूल जाता है

माँ को संभाले
या अपने पिता का 
फिर बीवी का 
या अपने बच्चों का

वो क्या करे
क्या न करे
क्या वजूद रह जाता है
क्या उस को भाता है

बड़ी उलझन है
नहीं बाकि कोई
रहती समझ्न है
बेकार हो जाता है

बेचारा कुछ नहीं कर पाता है
इस को वो समझते
समझते, बस दुनिया से
सोचता , चला जाता है !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

तून बहुत वाकई, अनाड़ी निकला !!

न समझ, और तून अनाड़ी निकला
मेरे दोस्त.,तून सच बड़ा खिलाडी निकला
तेरी हर साँस को अपना बनाया
पर वाकई, तो सब से बड़ा खिलाडी निकला !!

दर्द तो सीने में दे गया तून
बिन बताये छोड़ गया तून
जाना ही अगर था तुझको
तो कह देता , की जा रहा हूँ
पर तेरा, ऐसे जाना,
बड़ा ही दुखदाई निकला !!

न जाने क्या खता बन गयी
जो न खबर न, कोई ख़त आया
तेरे यहाँ से जाने के बाद
तेरा न कोई समाचार आया
पर चिंता मुझे रहती है तेरी
तून बहुत वाकई, अनाड़ी निकला !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

जीती जागती दुनिया का पागलपन

जीती जागती दुनिया का पागलपन
आज यह दिन कल वो दिन
कल फूल दिया था, आज मना रहा है
परसों चोक्लेटे खरीदेगा, फिर टेडी का दिन
फिर वादा करेगा, और हग दिन मनायेगा
फिर किस करता हुआ, वैलेंटाइन का दिन आ जायेगा

शामत आ गयी फूलों की , की पागल हो गया जमाना
चोक्लेट की सेल बढ़ा कर, टेडी को भी बना दिया दीवाना
वादा किया है तो निभाना पड़ेगा, हग को भी सुद्रेढ़ बनाना पड़ेगा
चुम्बन लेकर माशूका को सताना पड़ेगा
वाह अंग्रेजो, तुम तो भाग गए यहाँ से
भारत वालो, को वैलेंटाइन का दिन दिखा कर, यह समझाना पड़ेगा

की....इस देश में यह रीत मत डालो
जाकर अपने अपने धर्म का पालन कर डालो
देश के इतने त्यौहार हैं, उन को मनाने में ३६५ दिन कम हैं
क्या भारत देश के त्यौहार, किस दूसरे से कम हैं,
समझ समझ का फेर हैं, बस जहाँ देखो अंधेर ही अंधेर हैं

जश्न मनाओ, अपने देश के त्योहारों का

जय भारत
जय भारत भूमि

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

बस एक मुस्कराहट

अपनी, आन, बान , शान
है, बस एक मुस्कराहट
वो बाजार में खरीदी नहीं जा सकती

जब भी कोई गम तुझ को
सताये मेरे यारा
बस आ जाना मेरे पास
होल सेल में भी 
फ्री में बाँट दूंगा तुझे 
वो सारी मुस्कराहट

जिस को लेनेके लिए
तो दर दर भटकता है

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

दुनिया का साथ निभाता रहूँ

तेरी दुनिया को रोशन करने का
काम करना चाहता हूँ
में यहाँ पर वो मुकाम करना
चाहता हूँ

तेरा हर पल ख़ुशी से गुजरे
तेरा हर गम मेरे संग गुजरे
तेरी हर बात निराली बनजाये
बस में तेरा रखवाला बनकर

दुनिया का साथ निभाता रहूँ
ये दिल तेरे गमो का माली बन जाये !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

ताकती रहती हूँ राह तेरी

मैं आते जाते
ताकती रहती हूँ राह तेरी
दिन रात रह रहकर
आती रहती है याद तेरी

यह लम्हा बना दुःख देता है
जब तक नहीं दिखती सूरत तेरी
आ जा इक झलक दिखला जा
बुझे दिल को, मिलेगी सौगात , 

वो तेरी

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

दिल के बाजार में

दिल के बाजार में आजकल
कहने को कीमत नहीं देखी जाती
यह सब झूठ और फरेब हैं यारो
इस बात का कभी विश्वाश न करना..

पहली से मन भर जाता है जब
तब उस की तो सूरत भी नहीं देखि जाती
कितनी ही, उस में अच्छाई हो 
दूसरी के सामने , फिर झूठ्लाई नहीं जाती !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

भगवान् मुझे मौत क्यों नहीं देता

कुछ लोगो को मैने यह कहते हुए सुना है,
की, भगवान् मुझे मौत क्यों नहीं देता !!

क्या कभी यह गुजारिश भी की थी उन्होने
की मुझे पैदा ही क्यों कर रहा है, इस जहान के लिए !!

बड़े बुझ दिल हैं, , बड़े कमजोर हैं वो लोग,
तो जिन्दगी की हार को स्वीकार कर बैठे हैं !!

काश कभी दिल में झांक कर देखो
तुम्हारे परिवार के लोग कितने अरमान पाले बैठे हैं !!

खुद तो परेशां हो, और औरो को भी परेशां केर रहे हो,
जिन्दगी को लडने की बजाये, जंग लगा रहे हो !!

ऊपर वाले की इस शोहरत को मरते दम तक सम्भाल के रखना
जब ज्यादा परेशान तो जाओ, तो मेरा मोबाइल नंबर डायल जरूर करना !!

कर लेना, कह देना, जो बातें हों दिल के अंदर
मेरे पास दिल में तुम्हारे दिले, बहुत बड़ा है समन्दर !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ